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तृतीय प्रतिपत्ति : अवधिक्षेत्रादि प्ररूपण ]
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और उनके अर्थ से वह स्पष्ट ही है।
२०३. सोहम्मीसाणेसुणं भंते! देवाणं कइ समुग्घाया पण्णत्ता? गोयमा! पंच समुग्घाया पण्णत्ता, तं जहा-वेयणासमुग्घाए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए, वेउव्वियसमुग्घाए, तेजससमुग्धाए। एवं जाव अच्चुए। गेवेन्जाणं आदिल्ला तिण्णिसमुग्घाया पण्णत्ता।
सोहम्मीसाणदेवा भंते! केरिसयं खुहपिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति? गोयमा! णस्थि खुहपिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति जाव अणुत्तरोववाइया।
सोहम्मीसाणेसु णं भंते! देवा एगत्तं पभू विउव्वित्तए, पुहुत्तं पभू विउव्वित्तए? हंता पभू; एगत्तं विउव्वेमाणा एगिंदियरूवं वा जाव पंचिंदियरूवं वा, पुहुत्तं विउव्वेमाणा एगिंदियरूवाणि वा जाव पंचिंदियरूवाणि वा; ताई संखेज्जाइंपि असंखेज्जाइंपि सरिसाइंपि असरिसाइंपि संबद्धाइंपि असंबद्धाइंपि रूवाइं विउव्वतिं, विउव्वित्ता अप्पणा जहिच्छियाई कज्जाइं करेंति जाव अच्चुओ।
गेविजणुत्तरोववाइयादेवा किं एगत्तं पभू विउव्वित्तए, पुहुत्तं पभू विउव्वित्तए? गोयमा! एगत्तंपि पुहुत्तंपि। नो चेव णं संपत्तीए विउववंसु वा विउव्वंति वा विउविस्संति वा।
सोहम्मीसाणदेवा केरिसयं सायासोक्खं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति? गोयमा! मणुण्णा सद्दा जाव मणुण्णा फासा जाव गेविज्जा। अणुत्तरोववाइया अणुत्तरा सद्दा जाव फासा।
सोहम्मीसाणेसु देवाणं केरिसया इड्ढी पण्णत्ता? गोयमा! महड्ढिया महिज्जुइया जाव महाणुभागा इड्ढीए पण्णत्ता जाव अच्चुओ। गेविज्जणुत्तरा य सव्वे महिड्ढिया जाव सव्वे महाणुभागा अणिंदा जाव अहमिंदा णामं णामं ते देवगणा पण्णत्ता समणाउसो!
२०३. भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्पों में देवों के कितने समुद्घात कहे हैं?
गौतम! पांच समुद्धात होते हैं -१. वेदनासमुद्घात, २. कषायसमुद्घात, ३. मारणान्तिकसमुद्घात, ४. वैक्रियसमुद्घात और ५. तेजससमुद्घात । इसी प्रकार अच्युतदेवलोक तक पांच समुद्घात कहने चाहिए। ग्रैवेयकदेवों के आदि के तीन समुद्घात कहे गये हैं -
वेदना, कषाय और मारणान्तिक समुद्घात। .
भगवन् ! सौधर्म-ईशान देवलोक के देव कैसी भूख-प्यास का अनुभव करते हुए विचरते हैं? गौतम! यह शंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उन देवों को भूख-प्यास की वेदना होती ही नहीं है। अनुत्तरोपपातिकदेवों पर्यन्त इसी प्रकार का कथन करना चाहिए।
भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्पों के देव एकरूप की विकुर्वणा करने में समर्थ हैं या बहुत सारे रूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ है? गौतम ! दोनों प्रकार की विकुर्वणा करने में समर्थ है। एक की विकुर्वणा करते हुए वे एकेन्द्रिय का रूप यावत् पंचेन्द्रिय का रूप बना सकते हैं और बहुरूप की