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तृतीय प्रतिपत्ति : ज्योतिष्क चन्द्र-सूर्याधिकार ]
१९३. भगवन्! चन्द्रमा का विमान किस आकार का है ?
गौतम ! चन्द्रविमान अर्धकबीठ के आकार का है । वह चन्द्रविमान सर्वात्मना स्फटिकमय है, इसकी कान्ति स दिशा - विदिशा में फैलती है, जिससे यह श्वेत, प्रभासित है ( मानो अन्य का उपहास कर रहा हो ) इत्यादि विशेषणों का वर्णन करना चाहिए । इसी प्रकार सूर्य विमान भी ग्रहविमान भी और ताराविमान भी अर्धकबीठ आकार के हैं ।
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भगवन्! चन्द्रविमान का आयाम - विष्कंभ कितना है ? परिधि कितनी है ? और बाहल्य (मोटाई) कितना है ?
गौतम ! चन्द्रविमान का आयाम - विष्कंभ ( लम्बाई-चौड़ाई) एक योजन के ६१ भागों में से ५६ भाग (५६/६१) प्रमाण है। इससे तीन गुणी से कुछ अधिक उसकी परिधि है । एक योजन के ६१ भागों में से २८ भाग (२८/६१) प्रमाण उसकी मोटाई है।
सूर्यविमान के विषय में भी वैसा ही प्रश्न किया है।
गौतम ! सूर्यविमान एक योजन के ६१ भागों में से ४८ भाग प्रमाण लम्बा -चौड़ा, इससे तीन गुणी से कुछ अधिक उसकी परिधि और एक योजन के ६१ भागों में से २४ भाग ( २४ / ६१ ) प्रमाण उसकी मोटाई है।
ग्रहविमान आधा योजन लम्बा- -चौड़ा, इससे तीन गुणी कोस की मोटाई वाला है ।
कुछ अधिक परिधि वाला और एक
नक्षत्र विमान एक कोस लम्बा-चौड़ा, इससे तीन गुणी से कुछ अधिक परिधि वाला और आधे कोस की मोटाई वाला है ।
ताराविमान आधे कोस की लम्बाई-चौड़ाई वाला, इससे तिगुनी से कुछ अधिक परिधि वाला और पांच सौ धनुष की मोटाई वाला है ।
विवेचन - इस सूत्र में चन्द्रादि विमानों का आकार आधे कबीठ के आकार के समान बतलाया गया है। यहां यह शंका हो सकती है कि जब चन्द्रादि का आकार अर्धकबीठ जैसा हो तो उदय के समय, पौर्णमासी के समय जब वह तिर्यक् गमन करता है तब उस आकार का क्यों नहीं दिखाई देता है? इसका समाधान करते हुए कहा गया है कि यहां रहने वाले पुरुषों द्वारा अर्धकपित्थाकार वाले चन्द्रविमान की केवल गोल पीठ ही देखी जाती है, हस्तामलक की तरह उसका समतल भाग नहीं देखा जाता। उस पीठ के ऊपर चन्द्रदेव का महाप्रासाद है जो दूर रहने के कारण चर्मचक्षुओं द्वारा साफ-साफ दिखाई नहीं देता ।
१. अद्धकविट्ठागारा उदयत्थमणम्मि कहं न दीसंति ? ससिसूराण विमाणा तिरियखेत्तट्ठियाणं च ॥ उद्धविट्ठागारं पीठं तदुवरिं च पासाओ । वट्टालेखेण ततो समवट्टं दूरभावाओ ॥