Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 108
________________ तृतीय प्रतिपत्ति : ज्योतिष्क चन्द्र-सूर्याधिकार ] [ ८९ निम्नलदधिघणगोखीरफेणरययणियरप्पगासाणं वइरामयकुंभजुयलसुट्ठियपीवरवरवइरसोडव - -ट्टियदित्त- सुरत्तपरमप्पगासाणं अब्भुण्णयमुहाणं तवणिज्जविसालचंचल चलंतचवलकण्णविमलुज्जलाणं मधुवण्णभिसंतणिद्धपिंगलपत्तलतिवण्णमणिरयणलोयणाणं अब्भुग्गयमउलमल्लियाणं धवल - सरिस - संठिय- णिव्वणदढकसिण- फालियामयसुजायदंतमुसलोवसोभियाणं कंचणकोसीपविट्ठदंतग्गविमल-मणिरयणरुइरपेरंतचित्तरूवगविरायाणं तवणिज्ज-विसालतिलगपमुह परि मंडियाणं णाणामणिरयण-मुद्धगे वेज् जबद्धगलयवरभूसणाणं वेरुलियविचित्त-दंडणिम्मलवइामयतिक्खलट्ठअंकुसकुं भुजयलंतरोदियाणं तवणिज्जसुबद्धकच्छदप्पियबलुद्धराणं जंबूणयविमलघणमंडलवइरामयलालाललिय-ताल णाणा- मणिरयणघंटपासगरययामय-रज्जुबद्धलंबितघंटाजुयलमहुरसरमणहराणं अल्लीणपाण- जुत्त वट्टिय-सुजायलक्खण-पसत्थतवणिज्जबालगत्तपरिपुच्छणाणं उवचिय-पडिपुण्णकुम्म-चलण- लहु - विक्कमाणं अंकामयणक्खाणं तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जजोत्तगसुजोइयाणं कामगमाणं पीइगमाणं मणोगमाणं मणोरमाणं मणोहराणं अमियगईणं अमियबलवीरिय- पुरिसकार- परक्कमाणं महया गंभीरगुलगुलाइरवेणं महुरेणं मणहरेणं पूरेंता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ गयरूवधारीणं देवाणं दक्खिणिल्लं वाहं परिवहंति । स्वत: १९४. (आ) उस चन्द्रविमान को दक्षिण की तरफ से चार हजार देव हाथी का रूप धारण कर उठाते वहन करते हैं। उन हाथियों का वर्णन इस प्रकार है - वे हाथी श्वेत हैं, सुन्दर हैं, सुप्रभा वाले हैं। उनकी कांति शंखतल के समान विमल - निर्मल है, जमे हुए दही की तरह, गाय के दूध, फेन और चांदी के निकर की तरह उनकी कान्ति श्वेत है । उनके वज्रमय कुम्भ-युगल के नीचे रही हुई सुन्दर मोटी सूंड में जिन्होंने क्रीडार्थ रक्तपद्मों के प्रकाश को ग्रहण किया हुआ है ( कहीं-कहीं ऐसा देखा जाता है कि जब हाथी युवावस्था में वर्तमान रहता है तो उसके कुंभस्थल से लेकर शुण्डादण्ड तक ही पद्मप्रकाश के समान बिन्दु उत्पन्न हो जाया करते हैं - उसका यहां उल्लेख है) उनके मुख ऊंचे उठे हुए हैं, वे तपनीय स्वर्ण के विशाल, चंचल और चपल हिलते हुए विमल कानों से सुशोभित हैं, शहद वर्ण के चमकते हुए स्निग्ध पीले और पक्ष्मयुक्त तथा मणिरत्न की तरह त्रिवर्ण श्वेत कृष्ण पीत वर्ण वाले उनके नेत्र हैं, अतएव वे नेत्र उन्नत मृदुल मल्लिका के कोरक जैसे प्रतीत होते हैं, उनके दांत सफेद, एक सरीखे, मजबूत, परिणत अवस्था वाले, सुदृढ़, सम्पूर्ण एवं स्फटिकमय होने से सुजात हैं और मूसल की उपमा से शोभित हैं, इनके दांतों के अग्रभाग पर स्वर्ण के वलय पहनाये गये हैं। अतएव ये दांत ऐसे मालूम होते हैं मानो विमल मणियों के बीच चांदी का ढेर हों। इनके मस्तक पर तपनीय स्वर्ण के विशाल तिलक आदि आभूषण पहनाये हुए हैं, नाना मणियों से निर्मित ऊर्ध्व ग्रैवेयक आदि कंठ के आभरण गले में पहनाये हुए हैं। जिनके गण्डस्थलों के मध्य में वैडूर्यरत्न के विचित्र दण्ड वाले निर्मल वज्रमय तीक्ष्ण एवं सुन्दर अंकुश स्थापित किये हुए हैं । तपनीय स्वर्ण की रस्सी से पीठ का आस्तरण - झूले बहुत ही अच्छी तरह सजाकर एवं कसकर बांधा गया है अतएव ये दर्प से युक्त

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