Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ जीवाजीवाभिगमसूत्र
हे गौतम! लवणसमुद्र के दोनों किनारों पर ९५ हजार योजन का गोतीर्थ है। (क्रमशः नीचानीचा गहरा होता हुआ भाग है ।)
हे भगवन्! लवणसमुद्र का कितना बड़ा भाग गोतीर्थ से विरहित कहा गया है ?
गौतम ! लवणसमुद्र का दस हजार योजन प्रमाण क्षेत्र गोतीर्थ से विरहित है। (अर्थात् इतना दस हजार योजन प्रमाण क्षेत्र समतल है ।)
हे भगवन्! लवणसमुद्र की उदकमाला (समपानी पर सोलह हजार योजन ऊंचाई वाली जलमाला) कितनी बड़ी है ?
गौतम ! उदकमाला दस हजार योजन की है।' (जितना गहराई रहित भाग है उस पर रही हुई जलराशि को उदकमाला कहते हैं ।)
१७२. लवणे णं भंते! समुद्दे किसंठिए पण्णत्ते ?
गोयमा ! गोतित्थसंठिए, नावासंठाणसंठिए, सिप्पिसंपुडसंठिए, आसखंधसंठिए, वलभिसंठिए वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए पण्णत्ते ।
लवणे णं भंते! समुद्दे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं? केवइयं परिक्खेवेणं? केवइयं उव्वेहेणं? केवइयं उस्सेहणं? केवइयं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ?
गोयमा ! लवणे णं समुद्दे दो जोयणसयसहस्साईं चक्क वालविक्खं भेणं, पण्णरस जोयणसयसहस्साइं एकासीइं च सहस्साइं सयं च इगुकालं किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, सोलसजोयणसहस्साइं उस्सेहेणं सत्तरसजोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पण्णत्ते । .
हे भगवन ! लवणसमुद्र का संस्थान कैसा है ?
१७२.
गौतम ! लवणसमुद्र गोतीर्थ के आकार का, नाव के आकार का, सीप के पुट के आकार का, घोड़े के स्कंध के आकार का, वलभीगृह के आकार का, वर्तुल और वलयाकार संस्थान वाला
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हे भगवन्! लवणसमुद्र का चक्रवाल- विष्कंभ कितना है, उसकी परिधि कितनी है? उसकी गहराई कितनी है, उसकी ऊँचाई कितनी है ? उसका समग्र प्रमाण कितना है ?
गौतम : लवणसमुद्र चक्रवाल- विष्कंभ से दो लाख योजन का है, उसकी परिधि पन्द्रह लाख इक्यासी हजार एक सौ उनचालीस (१५८११३९) योजन से कुछ कम है, उसकी गहराई एक हजार योजन है, उसका उत्सेध ( ऊँचाई ) सोलह हजार योजन का है । उद्वेध योजन और उत्सेध दोनों मिलाकर समग्र रूप से उसका प्रमाण सत्तरह हजार योजन है ।
विवेचन- लवणसमुद्र का आकार विविध अपेक्षाओं को ध्यान में बताया गया है। क्रमश: निम्न, निम्नतर गहराई बढ़ने के कारण गोतीर्थ के
१. " पंचाणउई सहस्से गोतित्थे उभयओ वि लवणस्स । "
२. उदकमाला-समपानीयोपरिभूता पोडशयोजनसहस्रोच्छ्रया प्रज्ञप्ता ।
रखकर विभिन्न प्रकार का आकार का कहा गया है।