Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय प्रतिपत्ति :गोतीर्थ-प्रतिपादन]
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प्रश्न किया गया है कि लवणसमुद्र के दोनों किनारों से आरम्भ करने पर कितनी-कितनी दूर जाने पर कितनी-कितनी जलवृद्धि होती है? उत्तर में कहा गया है कि-लवणसमुद्र के पूर्वोक्त दोनों किनारों पर समतल भूभाग में जलवृद्धि अंगुल का असंख्यातवें भाग प्रमाण होती है और आगे समतल से प्रदेशवृद्धि से जलवृद्धि क्रमशः वढ़ती हुई ९५ हजार योजन जाने पर सात सौ योजन की वृद्धि होती है। उससे आगे दस हजार योजन के विस्तारक्षेत्र में सोलह हजार योजन की वृद्धि होती है । तात्पर्य यह है कि लवणसमुद्र के दोनों किनारोंसे ९५ प्रदेश (त्रसरेणु) जाने पर १६ प्रदेश की उत्सेधवृद्धि कही गई है । ९५ बालाग्र जाने पर १६ बालाग्र की उत्सेधवृद्धि होती है । इसी तरह यावत् ९५ हजार योजन जाने पर १६ हजार योजन की उत्सेधवृद्धि होती है। ___यहां त्रैराशिक भावना यह है कि ९५ हजार योजन पर सोलह (१६) हजार योजन की उत्सेधवृद्धि होती है तो ९५ योजन जाने पर कितनी उत्सेधवृद्धि होगी? राशित्रय की स्थापना-९५०००/१६०००/९५ दोनों-प्रथम और मध्य राशि के तीन-तीन शून्य हटाने पर ९५/१६/९५ की राशि रहती है। मध्यमराशि १६ को तृतीय राशि ९५ से गुणा करने पर १५२० आते हैं । इसमें प्रथम राशि ९५ का भाग देने पर १६ भागफल होता है । अर्थात् ९५ योजन जाने पर १६ योजन की जलवृद्धि होती है। कहा है
पंचाणउइसहस्से गंतूणं जोयणाणि उभओ वि। उस्सेहेणं लवणो सोलस साहिस्सओ भणिओ॥१॥ पंचणउई लवणे गंतूणं जोयणाणि उभओ वि।
उस्सेहेणं लवणो सोलस किल जोयणे होइ॥२॥ यदि ९५ योजन जाने पर १६ योजन का उत्सेध है तो ९५ गव्यूत जाने पर १६ गव्यूत का, ९५ धनुष । जाने पर १६ धनुष का उत्सेध भी सहज ज्ञात हो जाता है। गोतीर्थ-प्रतिपादन
१७१. लवणस्स णं भंते! समुदस्स केमहालए गोतित्थे पण्णत्ते?
गोयमा! लवणस्स णं समुदस्स उभओ पासिं पंचाणउई पंचाणउई जोयणसहस्साइं गोतित्थं पण्णत्ते।
लवणस्स णं भंते! समुदस्स केमहालए गोतित्थविरहिए खेत्ते पण्णत्ते? गोयमा! लवणस्स णं समुद्दस्स दसजोयणसहस्साई गोतित्थविरहिए खेत्ते पण्णत्ते? लवणस्स णं भंते! समुद्दस्स केमहालए उदगमाले पण्णत्ते? ' गोयमा! दस जोयणसहस्साई उदगमाले पण्णत्ते। १७१. हे भगवन् ! लवणसमुद्र का' गोतीर्थ भाग कितना बड़ा है?
(क्रमशः नीचा-नीचा गहराई वाला भाग गोतीर्थ कहलाता है।) १.गोतीर्थमेव गोतीर्थम्-क्रमण नीचो नीचतरः प्रवेशमार्गः।