Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय प्रतिपत्ति : पुष्करवरद्वीप की वक्तव्यता]
[३९ पुक्खरवरदीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते, तं चेव सव्वं। एवं चत्तारिवि दारा।सीयासीओदा णत्थि भाणियव्वाओ।
पुक्खरवरस्सणं भंते ! दीवस्स दारस्स य दारस्स य एस णं केवइयं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते? गोयमा ! अडयाल सयसहस्सा बावीसं खलु भवे सहस्साइं।
___ अगुणुत्तरा य चउरो दारंतर पुक्खरवरस्स॥१॥ पएसा दोण्हवि पुट्ठा, जीवा दोसुवि भाणियव्वा। से केणटठेणं भंते ! एवं वुच्चइ पुक्खरवरदीवे पुक्खरवरदीवे ?
गोयमा ! पुक्खरवरे णं दीवे तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे पउमरूक्खा पउमवणा पउमवणसंडा णिच्चं कुसुमिआ जाव चिट्ठति; पउममहापमरूक्खे एत्थ णं पउमपुंडरीया णामं दुवे देवा महिड्डिया जाव पलिओवमट्ठिईया परिवसंति, से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ पुक्खरवरदीवे पुक्खरवरदीवे जाव णिच्चे। . पुक्खरवरे णं भंते ! दीवे केवइया चंदा पभासिंसु वा ३ ? एवं पुच्छा
चोयालं चंदसयं चउ यालं चेव सूरियाण सयं । पुक्खर वर दीवंमि चरं ति एता पभासें ता॥१॥ चत्तारि सहस्साई बत्तीसं चेव होंति णक्खत्ता। छ च्च सया बावत्तर महग्गहा बारस सहस्सा ॥२॥ छण्णउइ सयसहस्सा चत्तालीसं भवे सहस्साई।
चत्तारि सया पुक्खरवर तारागणकोडिकोडीणं ॥३॥ सोभिंसु वा सोभन्ति वा सोभिस्संति वा।
१७६. (अ) गोल और वलयाकार संस्थान से संस्थित पुष्करवर नाम का द्वीप कालोदसमुद्र को सब ओर घेर कर रहा हुआ है। उसी प्रकार कहना चाहिए यावत् यह समचक्रवाल संस्थान वाला है, विषमचक्रवाल संस्थान वाला नहीं है।
भगवन् ! पुष्करवरद्वीप का चक्रवालविष्कंभ कितना है और उसकी परिधि कितनी है?
गौतम ! वह सोलह लाख योजन चक्रवालविष्कंभ वाला है और उसकी परिधि एक करोड़ बानवै लाख नव्यासी हजार आठ सौ चौरानवै (१९२८९८९४) योजन है।
वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से परिवेष्ठित है । दोनों का वर्णनक कहना चाहिए। भगवन् ! पुष्करवरद्वीप के कितने द्वार हैं ? गौतम ! चार द्वार हैं -विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित ।