Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 19
________________ यद्यपि श्रमणसंघ के युवाचार्य विद्वद्वरेण्य पं. र. मुनिश्री मिश्रीलालजी म.सा. 'मधुकर' ने, जिनके नेतृत्व में आगमबत्तीसी का प्रकाशन हो रहा है, इसे अक्षरश: अवलोकन कर लिया है और भारिल्लजी ने संशोधन कर दिया है, अतएव मैं निश्चिन्त हूँ । प्रस्तुत सूत्र में मूल आगम-वाणी का एवं उसके व्याख्या - साहित्य का संक्षेप में परिचय दिया गया है, जिससे प्रबुद्ध पाठकों को आगम की महत्ता का परिज्ञान हो सके। कई वर्षों से आगमसेवा के प्रति मेरे मन के कण-कण में, अणु-अणु में गहरी निष्ठा रही है। कर्मवर्गणा से पृथक् होने आगम का स्वाध्याय एक रामबाण औषध है। सर्वज्ञ वीतराग परमात्मा की पावन वाणी में जो तात्त्विक रहस्य प्राप्त होता है, वह अल्पज्ञों की वाणी में कदापि नहीं मिल सकता। वास्तविक तथ्यों को जानने के लिए तत्त्वज्ञ गुरु का अनुग्रह परम आवश्यक है। ज्ञानी गुरु के बिना आगमों के गहन रहस्यों को समझना अल्पज्ञों के लिए अशक्य 1 गुरु का संयोग प्राप्त होने पर भी जब तक छद्मस्थदशा है, तब तक त्रुटियों की सम्भावना बनी ही रहती है। अतएव गहन रहस्यों से अनभिज्ञ होने से प्रस्तुत अनुवाद में कहीं अर्थ की त्रुटियाँ रही हों तो पाठक क्षमा करें। इस प्रकार पूरी तरह समर्थ न होने पर भी परम श्रद्धेय सद्गुरुवर्य, अनुयोग-प्रवर्तक श्री कन्हैयालालजी म. 'कमल' एवं परमोपकारी पूजनीया मातेश्वरी महासती श्री माणेककुंवरजी म. की पावनी कृपा से तथा पण्डित शोभाचन्द्रजी भारिल्ल की अनन्य प्रेरणा से तथा परमादरणीय पू. आत्मारामजी म.सा. एवं श्री विजयमुनिजी म. की श्रुत सहायता से एवं मेरे सहयोगी अन्य साध्वी-समवाय के परम सहयोग से यह कार्य सम्पन्न करने में समर्थ हुई हूँ। इन सभी का सहयोग निरन्तर मिलता रहे और भविष्य में भी आगम-सेवा का अलभ्य लाभ मुझे मिलता रहे, यही हार्दिक कामना । मुझे आशा ही नहीं सम्पूर्ण विश्वास है कि प्रस्तुत आगम जन-जन के अन्तर्मानस में वीतराग परमात्मा के प्रति गहरी निष्ठा उत्पन्न करेगा। अज्ञान अन्धकार को नष्ट करके ज्ञानप्रकाश फैलाएगा। इसी आशा और उल्लास के साथ प्रस्तुत आगम प्रबुद्ध पाठकों को समर्पित कर अत्यन्त आनन्द का अनुभव करती हूँ । [ १६ ] साध्यसाधिका साध्वी मुक्तिप्रभा

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