Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 83
________________ ३-१० अध्ययन इसिदास आदि २१–एवं सुणक्खत्त-गमेणं सेसा वि अट्ठ भाणियव्वा। नवरं आणुपुव्वीए दोण्णि रायगिहे, दोण्णि साएए, दोण्णि वाणियग्गामे। नवमो हत्थिणापुरे। दसमो रायगिहे। नवण्हं भद्दाओ जणणीओ, नवण्हं वि बत्तीसओ दाओ।नवण्हं णिक्खमणं थावच्चापुत्तस्स सरिसं, वेहल्लस्स पिया करेइ (णिक्खमणं) छम्मासा वेहल्लए। नव धण्णे। सेसाणं बहू वासा। मासं संलेहणा।सव्वट्ठसिद्धे सव्वे महाविदेहे सिज्झिस्संति। एवं दस अज्झयणाणि। इस प्रकार सुनक्षत्र की तरह शेष आठ कुमारों का वर्णन भी समझ लेना चाहिए। विशेष यह है कि अनुक्रम से दो राजगृह में, दो साकेत में, दो वाणिज्यग्राम में, नववाँ हस्तिनापुर में और दसवाँ राजगृह में उत्पन्न हुआ। नौ की जननी भद्रा थी। नौ को बत्तीस-बत्तीस का दहेज दिया गया। नौ का निष्क्रमण थावच्चापुत्र की तरह जानना चाहिए। वेहल्ल का निष्क्रमण उसके पिता ने किया। छह मास की दीक्षा पर्याय वेहल्ल की, नौ मास की दीक्षा पर्याय धन्य की रही। शेष की पर्याय बहुत वर्षों की रही। सबकी एक मास की संलेखना। सर्वार्थसिद्ध विमान में उपपात (जन्म)। सब महाविदेह क्षेत्र से सिद्ध होंगे। इस प्रकार दस अध्ययन पूर्ण हुए। विवेचन यहाँ कहना केवल इतना ही है कि प्रस्तुत आगम में बार-बार स्कन्दक अनगार को उदाहरणरूप में उपस्थित किया गया है। उनका वर्णन हमें कहाँ से प्राप्त हो ? तथा थावच्चापुत्र के विषय में भी यही कहा जा सकता है। उत्तर यह है कि प्रथम अर्थात् स्कन्दक मुनि का वर्णन पञ्चम अङ्ग भगवती के द्वितीय शतक में आया है और थावच्चापुत्र का वर्णन छठे अङ्ग के पञ्चम अध्ययन में है। यह 'अनुत्तरौपपातिकसूत्र' नौवाँ अङ्ग है। अतः सूत्रकार ने उसी वर्णन को यहाँ पर दोहराना उचित न समझ कर केवल दोनों का उल्लेखमात्र करके बात समाप्त कर दी है। पाठकों को इनके विषय में पूरा ज्ञान प्राप्त करने के लिए उक्त सूत्रों का अवश्य अध्ययन करना चाहिए। यहाँ श्री श्रमण भगवान् महावीर के पास धर्म-कथा सुनने को जाना, वहाँ वैराग्य की उत्पत्ति, दीक्षामहोत्सव, परम उच्चकोटि का तपःकर्म, शरीर का कृश होना, उसी के कारण अर्धरात्रि में धर्मजागरण करते हुए अनशन व्रत की भावना का उत्पन्न होना, अनशन कर सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न होना, भविष्य में महाविदेहक्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्धगति प्राप्त करना इत्यादि विषय का संक्षेप में कथन किया गया है। निक्षेप • २२–एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धेणं लोगणाहेणं लोगपदीवेणं लोगपजोयगरेणं अभयदएणं सरणदएणं चक्खुदएणं मग्गदएणं धम्मदएणं धम्म-देसएणं धम्मवरचाउरंतचक्वट्टिणा अप्पडिहय-वर-णाण-दसणधरेणं जिणेणं जावएणं बुद्धेणं बोहएणं मुत्तेणं मोयएणं तिण्णेणं तारएणं, सिवं अयलं अरुयं अणंतं अक्खयं अव्वाबाहं अपुणरावत्तयं सिद्धिगइणामधेयं ठाणं

Loading...

Page Navigation
1 ... 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134