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परिशिष्ट — पारिभाषिक शब्दकोष
१३. गुणरयण तवोकम्म
गुणरत्न तप । यह तप १६ मास का है, जिसमें प्रथम मास में एक उपवास, दूसरे में दो और क्रमशः बढ़ते १६ वें में १६ उपवास होते हैं ।
१४. गुत्तबंभयारी
मन, वचन और काय को संयत करने वाला ब्रह्मचारी भिक्षु ।
१५. छट्ट
एक साथ दो उपवास अर्थात् दो दिन संपूर्ण आहार का परित्याग एवं अगले-पिछले दिन एकाशन करके छह बार के भोजन आदि का त्याग करना ।
१६. जयण-घडण जोग-चरित्त
.यतन - - यत्न, यतना, विवेक, प्राणी-रक्षा करना। घटन प्रयत्न, उद्यम, पुरुषार्थ । योग मिलाप, जोड़ना । जिसमें यतना और उद्यम है, इस प्रकार के चारित्र या चरित्र वाला व्यक्ति । १७. तुव तपः, १८. थेर
. जिसमें कर्मों का क्षय होता है, इच्छानिरोध ।
स्थविर, वृद्ध । आगम में स्थविर के तीन प्रकार बताये हैं (१) वयःस्थविर ६० वर्ष की आयु वाला भिक्षु । (२) प्रव्रज्यास्थविर २० वर्ष की दीक्षा पर्याय वाला भिक्षु । (३) श्रुतस्थविर – स्थानांग आदि का ज्ञाता ।
१९. पत्त - चीवर
पात्र - भाजन, चीवर
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२२. संयम
एक पहर का समय । पुरुष प्रमाण छाया-काल ।
वस्त्र |
२०. परिणिव्वाणवत्तिय
श्रमणों के देह-त्याग के निमित्त से कायोत्सर्ग का किया जाना । २१. पोरिसी
२३. समुदाण उच्च,
२४. सज्झाय
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मनोनिरोध, इन्द्रिय - निग्रह, यत्नपूर्वक जीवहिंसादि का त्याग ।
, नीच और मध्यम कुल की भिक्षा, गोचरी ।
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स्वाध्याय, शास्त्र का पठन आवर्तन इत्यादि ।
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सम्बन्ध,