Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 124
________________ परिशिष्ट-शब्दार्थ सामाइयमाइयाई - सामायिक आदि सामी-स्वामी साहस्सीणं- सहस्रों में (सहस्रों का) सिज्झणा - सिद्धि सिज्झहिति–सिद्ध होगा सिढिल-कडाली - ढीली लगाम सिण्हालए-सेफालक नामक फल विशेष सिद्धि-गति-नामधेयं-सिद्धि गति नाम वाले सिलेस-गुलिया- श्लेष्म की गुटिका सिवं-कल्याणरूप सीस -शिर सीस-घडीए – शिररूपी घट से सीसस्स -शिर की सीहसेणे — सिंहसेनकुमार सीहे -सिंहकुमार सीहो-सिंह, शेर सुकयत्थे - सुकृतार्थ, सफल सुक्कं-सूखा हुआ सुक्कं-छगणिया-सूखा हुआ गोबर, गोहा-छाणा सुक्क-छल्ली-सूखी हुई छाल सुक्कदिए – सूखी हुई मशक सुक्क-सप्प-समाणाहिं -सूखे हुए सर्प के समान सुक्का-सूखी हुई, सूखे हुए सुक्कातो-सूखी हुई से सुक्केणं-सूखे हुए सुणक्खत्त-गमेणं-सुनक्षत्र के समान सुणक्खत्तस्स-सुनक्षत्र के सुणक्खत्ते--सुनक्षत्रकुमार सुपुण्णे - अच्छे पुण्य वाला सुमिणे-स्वप्न में सुरूपे - सुन्दर, अच्छे रूप वाला सुलद्धे-अच्छी तरह से प्राप्त सुहम्मस्स-सुधर्म नामक गणधर का सुहम्मे-सुधर्मस्वामी सुहुय० (सुहुय-हुयासण इव)- अच्छी तरह से जली हुई अग्नि के समान सुद्धदंते - शुद्धदन्तकुमार से- वह, उसके से-अथ, प्रारम्भ-बोधक अव्यय सेणिए (ते)-श्रेणिक राजा सेणिओ- श्रेणिक राजा सेणिया-हे श्रेणिक ! सेसं-शेष (वर्णन), बाकी सेसा-शेष सेसाणं-शेषों का सेसाणवि-शेषों का भी सेसावि- शेष भी सोच्चा-सुनकर सोणियत्ताए (ते)-रुधिर के कारण सोलस-सोलह सोहम्मीसाण - सौधर्म और ईशान नामक पहला और दूसरा देवलोक हकुब-फले - हकुब वनस्पति विशेष का फल हट्ठ-तुट्ठ- प्रसन्न और सन्तुष्ट हणुयाए -चिबुक, ठोड़ी की हत्थंगुलियाणं- हाथों की अंगुलियों की हत्थाणं- हाथों की हत्थिणापुरे – हस्तिनापुर में हल्ले - हल्लकुमार हुयासणे (इव) - अग्नि के समान होति – होते हैं होत्था-था, थी

Loading...

Page Navigation
1 ... 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134