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अनुत्तरोपपातिकदशा
२५. समण
श्रमण – श्रमशील मुनि, निर्ग्रन्थ । २६. संलेहणा
संलेखना, शारीरिक और मानसिक तप से कषाय आदि आत्मविकारों को तथा काय को कृश करना। मरण से पूर्व अनशन व्रत, संथारा करना। २७. सामण्ण-परियाय
श्रामण्यपर्याय, साधुता का काल, संयम-वृत्ति। २८. समोसरण
समवसरण, तीर्थङ्कर का पधारना । १२ प्रकार की सभा का मिलना । जहां भगवान् विराजित होते हैं, वहां देवों द्वारा की जाने वाली विशिष्ट रचना। २९. सागरोवम
सागरोपम, काल विशेष, दश कोडाकोडी पल्योपमपरिमित काल, जिसके द्वारा नारकों और देवों का आयुष्य नापा जाता है।