Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 118
________________ परिशिष्ट – शब्दार्थ ८३ जंबू - जम्बूस्वामी, सुधर्मास्वामी के मुख्य शिष्य जेणेव - जिस ओर जणणीओ - माताएँ जोइज्जमाणेहिं – दिखाई देती हुई जणवयविहार - देश में विहार ठाणं-स्थान को जधा- जैसे ठिती-स्थिति जमालि - जमालिकुमार ढेणालिया-जंघा - ढेणिक पक्षी की जंघा जम्म-जन्म ढेणालियापोरा-ढेणिक पक्षी के सन्धिस्थान जम्मजीवियफले - जन्म और जीवन का फल ण-नहीं, निषेधार्थक अव्यय जयंते – जयन्त विमान में णगरी-नगरी जयणघडणजोगचरित्ते - जयन (प्राप्त योगों में उद्यम) णगरीए - नगरी में (से) घटन (अप्राप्त योगों की प्राप्ति का उद्यम) और णगरीतो-नगरी से योग (मन आदि इन्द्रियों के संयम) से युक्त णगरे–नगर चरित्र वाला णमंसति - नमस्कार करता है जरग्ग-ओवाणहा- सूखी जूती णवरं-विशेषता-बोधक अव्यय जरग्ग-पाद - बूढ़े बैल का पैर (खुर) णाणत्तं-नानात्व, भिन्नता जहा- जैसा, जैसे णाम-नाम जहाणामए (ते)-यथा-नामक, कुछ भी नाम वालाणाम-नाम वाला जा- जैसी णिक्खंतो- निकला, गृहस्थी छोड़कर दीक्षित हो जाणएणं-जानने वाले गया जाणूणं- जानुओं का णिक्खमणं-निष्क्रमण, दीक्षा होना जाणेत्ता-जानकर णिग्गता (या)-निकली जाते- बालक णिग्गते – निकला जाते-हो गया णिग्गतो (ओ)-निकला जामेव -जिस णिम्मंस-मांस-रहित जाली-जालि अनगार को णो-नहीं. निषेधार्थक अव्यय जालि – जालिकुमार तए - इसके अनन्तर जालिस्स - जालि की तओ-तीन जालीकुमारो- जालिकुमार तं -उस जावज्जीवाए – जीवनपर्यन्त तं जहा— जैसे जाहे - जब तच्चस्स - तीसरे जिणेणं - राग-द्वेष को सर्वथा जीतने वाले जिन तते - इसके अनन्तर भगवान् ने ततो - इसके अनन्तर जियसत्तुं - जितशत्रु राजा ने तत्थ-वहां जियसत्तू - जितशत्रु नाम का राजा तरुणए (ते)-कोमल जिब्भाए -जिह्वा की, जीभ की तरुणगएलालुए-कोमल आल जीवेण - जीव की शक्ति से तरुणग-लाउए-कोमल तुम्बा जीहा-जिह्वा, जीभ तरुणिका-छोटी, कोमल

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