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परिशिष्ट
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उड्डुं – ऊँचे उन्हे गर्मी में उदरं . पेट
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- शब्दार्थ
उदर- भायण उदर- भायणेणं
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ऊरुस्स
ऊरू -
उदर- भायणस्स
उप्पि — ऊपर
उब्भड - घटामुहे – घड़े के मुख के समान विकराल
गई हैं
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मुख वाला उम्मुक-बालभावं • बालकपन से अतिक्रान्त, जिसने बचपन पार किया हो उयरंति - उर- कडग - देस - भाएणं चटाई के विभागों से
• उतरते हैं
- वक्षस्थल (छाती) रूपी
उर- कडयस्स – छाती रूपी चटाई की
उवयालि - उपजालिकुमार उववज्जिहिंति - उत्पन्न होंगे उaaणे, ने
- उत्पन्न हुआ उपपात, उत्पत्ति
उववायो उवसोभेमाणे उवागच्छति • आता है
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उवागवे – आया
उव्वुड - यणकोसे - जिसकी आँखें भीतर धँस
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उदर-भाजन, - उदर-भाजन से
उदर भाजन की
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- शोभायमान होता हुआ
पेट रूपी पात्र
- ऊरुओं का
- दोनों ऊरू
एएसिं - इनके विषय में, इनका
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ग्यारह
एक्कारसएगदिवसेणं एवं इस यावे - एवं - इस प्रकार
एव – ही, निश्चयार्थ बोधक अव्यय
एवामेव – इसी प्रकार
एसणाए
एक ही दिन में
• इस प्रकार का
- एषणा - समिति – उपयोगपूर्वक आहार आदि की गवेषणा से
ओयरंति ओरालेणं कइ – कितने
- कङ्क नामक पक्षी की जंघा
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कंक- जंघा कंपण-वातियो - कम्पनवायु के रोग वाला व्यक्ति कट्ठ-कोलंबए – लकड़ी का कोलंब - कट्ठ- पाठया- - लकड़ी की खड़ाऊँ कडिकडाहेणं. - कटि (कमर) रूपी कटाही ने कडिपत्तस्स - - कटि-पत्र की, कमर की
- पात्र विशेष
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- उतरते हैं
करेंति
करेति
करेह
- उदार
कण्ण - कान
कण्णाणं
कण्हो कतरे . कौनसा
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कदाति - कभी, कदाचित्
कन्नावली
कप्पति
कप्पे
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- कानों की
- कृष्ण वासुदेव
- कान के भूषणों की पंक्ति
– कल्पता है, योग्य है
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- कल्प, वैमानिक देवों के सौधर्म - आदि विमान
प्रधान
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कय-लक्खण - सफल लक्षण वाला
कयाइ (ति) — कदाचित्, कभी करग - गीवा - करवे (मिट्टी के छोटे-से पात्र) की ग्रीवा अर्थात् गला
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- करते हैं
- करता है
- करो
कल - संगलिया कलातो – कलाएँ
कलाय - संगलिया कहिं—कहाँ कहेति -
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- कलाय - धान्य विशेष की फली
• कलाय की फली
- कहता है
काउस्सग्गं - कायोत्सर्ग, धर्मध्यान
काकं (गं) दी - काकन्दी नाम की नगरी काकजंघा - - कौवे की जाँघ, काक- जंघा नामक औषधि विशेष
कागंदी
- काकन्दी नगरी में