________________
परिशिष्ट-शब्दार्थ
दोच्चस्स – दूसरे
पंच-धाति-परिग्गहित - पाँच धाइयों द्वारा ग्रहण दोण्हं-दो का
किया हुआ दोनि-दो का
पगति-भहए - प्रकति से भद्र.सौम्य स्वभाव वाला धण्णस्स-धन्यकुमार या धन्य अनगार का
पग्गहियाए - ग्रहण की हुई, स्वीकार की हुई धण्णे (न्ने)-धन्य कुमार या अनगार
पज्जुवासति-सेवा करता है धण्णे -धन्य है
पडिगए-चला गया धण्णो (नो)-धन्य अनगार
पडिगओ-चला गया धन्न-धन्यकुमार का नाम
पडिगता - चली गई धन्नस्स-धन्य कुमार या अनगार का
पडिगया-चली गई धम्म-कहा-धर्म-कथा
पडिगाहेति - ग्रहण करता है धम्म-जागरियं-धर्म-जागरण
पडिग्गहित्तते - ग्रहण करने के लिए धम्म-दएणं-श्रुत और चारित्र रूप धर्म देने वाले पडिणिक्खमति – बाहर निकलता है धम्म-देसएणं-धर्म का उपदेश करने वाले पडिदंसेति-दिखाता है धम्म-वर-चाउरंत-चक्कवट्टिणा- उत्तम चारों दिशाओं पडिबंध - प्रतिबन्ध, विघ्न, देरी
पर अखंड शासन करने वाले उत्तम धर्म के पढम-छट्ठ-क्खमण-पारणगंसि-पहले षष्ठ व्रत (बेले) चक्रवर्ती
के पारणे में धारिणी-श्रेणिक राजा की एक रानी
पढमस्स - पहले धारिणी-सुआ-धारिणी देवी के पुत्र
पढमाए - पहली नंदादेवी - इस नाम वाली रानी
पढमे- पहले (अध्ययन) में नगरी-नगरी
पण्णग-भूतेणं-सर्प के समान नगरीए-नगरी में
पण्ण (न) त्ता - प्रतिपादन किये हैं नगरे-नगर
पण्ण (त्र) त्ते - प्रतिपादन किया है, कहा है नव-नौ
पण्णा (ना) यंति - पहचाने जाते हैं नवण्हं-नौ की
पत्त-चीवराई-पात्रों और वस्त्रों को नवण्हवि-नौवों की
पयययाए - अधिक यत्न वाली नवमस्स-नौवें का
परिनिव्वाण-वत्तियं - मृत्यु के उपलक्ष्य में किया नव-मास-परियातो-नौ महीने की संयमवृत्ति
जाने वाला नवमे-नौवाँ
परियातो - संयम अवस्था या साधु-वृत्ति नवमो-नौवाँ
परिवसइ (ति)- रहता है (थी) नवरं - विशेषता-सूचक अव्यय
परिसा-परिषद्, श्रोतृ-समूह नाम-नाम वाला
पलास-पत्ते-पलाश (ढाक) का पत्ता नासाए - नासिका की, नाक की
पव्वइ(ति)ते - प्रव्रजित हुआ निसम्म - ध्यानपूर्वक सुनकर
पव्वयामि – प्रवजित हुआ हूँ, दीक्षा ग्रहण करता हूँ पंच-पाँच
पव्वाय-वदण-कमले-जिसका मुख-कमल पंचण्हं - पाँच का
मुरझा गया हो पंच-धाति-परिक्खित्तो- पाँच धाइयों से घिरा हुआ पाउणित्ता - पालन कर