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१.
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४.
अन्तगडदसा
८ वाँ अङ्गसूत्र । इसमें उसी भव अन्तिम श्वासोच्छ्वास के साथ संसार का अन्त करने वाले करने वाले - साधकों के जीवन का वर्णन है।
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३.
५.
६.
७.
अंग
गणधरप्रणीत जैन आगमसाहित्य । आचारांग से दृष्टिवाद तब बारह अंग हैं।
८.
पारिभाषिक शब्दकोष
अणगार
जिसके अगार
— घर – न हो, त्यागी, साधु, भिक्षु ।
अपरितंत जोगी
खेद-रहित योग वाला, खेदशून्य-समाधि वाला, संयम-साधना में न थकने वाला साधक । अभिग्गह
प्रतिज्ञा, भोजन आदि लेने में पदार्थों की मर्यादा बाँधना, विशेष प्रकार का नियम लेना ।
आयार-भंडय
आचार पालने के उपकरण - पात्र, मुखवस्त्रिका और रजोहरण आदि ।
आयंबिल
तपविशेष, रूक्ष आहार ग्रहण करना, स्वादजय की साधना ।
वाला ।
१०. उववाय
आउक्खय, भवक्खय, ठिक्खय
आयु-कर्म के दलिकों का क्षय । भव का क्षय, वर्तमान नर, नारक आदि पर्याय का अन्त । भुज्यमान आयुकर्म की स्थिति अर्थात् कालमर्यादा की समाप्ति ।
९.
[ दृष्टिवाद लुप्त है । ]
ईरियासमिय
चलने-फिरने में, आने-जाने में उपयोग (विवेक) रखने वाला, अर्थात् यतना - सावधानी से गमन करने
आत्मा औपपातिक है, देव और नारक भव में उत्पत्ति ।
११. उज्झियधम्मिय
ऐसा पदार्थ जो हेय अर्थात् छोड़ने योग्य हो, जिसे दूसरों ने त्याग दिया हो ।
- मोक्ष प्राप्त
१२. काउस्सग्ग
कायोत्सर्ग, कायिक ममत्व का परित्याग, एवं शारीरिक क्रियाओं का परित्याग ।