Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 94
________________ परिशिष्ट उक्कमेणं सेसा : उत्क्रमेण शेषा 'अनुक्रम और उत्क्रम" । अनुक्रम का अर्थ है, नीचे से ऊपर की ओर क्रमशः बढ़ना, तथा उत्क्रम का अर्थ है ऊपर से नीचे की ओर क्रमशः उतरना । अनुक्रम को (In Serial Order) कहते हैं तथा उत्क्रम को (In the Upward Order) कहते हैं । - - टिप्पण 44 ५९ अनुत्तरौपपातिकदशा के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन में दश कुमारों के देवलोक सम्बन्धी उपपात=जन्म (Rebirth) वर्णन किया गया है, जो इस प्रकार है - जालि, मयालि, उपजालि, पुरुषसेन तथा वारिषेण अनुक्रम - विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध में उत्पन्न हुए । दीर्घदन्त सर्वार्थसिद्ध में उत्पन्न हुआ। शेष चार उत्क्रम से उत्पन्न हुए, जैसे कि अपराजित में लष्टदन्त, जयन्त में बेहल्ल, वैजयन्त में वेहायस, विजय में अभय । उक्त दश कुमारों के सम्बन्ध में शेष वर्णन प्रथम अध्ययन में वर्णित जालिकुमार के वर्णन के समान समझ लेना चाहिए। लट्ठदन्त • इस नाम का उल्लेख प्रथम वर्ग में भी आ चुका है । वहाँ माता धारिणी तथा पिता श्रेणिक हैं और उपपात जयंतविमान में बताया ' । द्वितीय वर्ग में भी लट्ठदन्त नाम का उल्लेख आता है और वहाँ भी माता धारिणी तथा पिता श्रेणिक ही हैं तथा उपपात वैजयन्त विमान में बताया है। प्रश्न होता है, कि क्या यह लट्ठदन्त एक ही व्यक्ति का नाम है या भिन्न व्यक्तियों का एक ही नाम है ? एक व्यक्ति का नाम होने पर किसी भी तरह संगति नहीं बैठ सकती । एक व्यक्ति का अलग-अलग उपपात नहीं हो सकता और संख्या प्रथम वर्ग की १० और इस वर्ग की १३ दोनों मिलकर २३ होनी चाहिए, यह भी एक व्यक्ति मानने पर कैसे हो सकता है ? 'श्रमण भगवान् महावीर' के लेखक पुरातत्त्ववेत्ता आचार्य कल्याणविजयजी ने अपनी उक्त पुस्तक के पृ. ९३ पर तीर्थंकर जीवन वाले प्रकरण में लिखा है - " श्रेणिक की उपर्युक्त घोषणा का बड़ा सुन्दर प्रभाव पड़ा । अन्यान्य नागरिकों के अतिरिक्त जालिकुमार, मयालि, उपयालि, पुरुषसेन, वारिषेण, दीर्घदन्त, लष्टदन्त, वेहल्ल, वेहायस, अभय, दीर्घसेन, महासेन, लष्टदन्त, गूढदन्त, शुद्धदन्त, हल्ल, द्रुम, द्रुमसेन, महाद्रुमसेन, सिंह, सिंहसेन, महासिंहसेन तथा पूर्णसेन — श्रेणिक के इन तेईस पुत्रों और नन्दा, नन्दामती, नन्दोत्तरा, नन्दसेणिया, मरुया, सुमरुता, महामरुता, मरुदेवा, भद्रा, सुभद्रा, सुजाता, सुमना और भूतदत्ता नाम की श्रेणिक की तेरह रानियों ने प्रव्रजित होकर भगवान् महावीर के श्रमणसंघ में प्रवेश किया।" अस्तु विभिन्न स्थलों पर आया लष्टदन्त नाम किसी एक व्यक्ति का न होकर भिन्न व्यक्ति का होने से ही सूत्रोक्त उल्लेख संगति पा सकता है। इस सम्बन्ध में विशेष गम्भीरता से सोचने पर जो संगति मालूम हुई है, वह इस प्रकार है— प्राकृत शब्द के संस्कृत में भिन्न-भिन्न उच्चारण हो सकते हैं : जैसे 'कय' का संस्कृतरूपान्तर कज, कच, कृत । 'कइ' का कपि, कवि । 'पुण्ण' का पुण्य अथवा पूर्ण । इसी प्रकार 'लट्ठदन्त' शब्द के भिन्न-भिन्न उच्चारण होना असंगत नहीं। जैसे कि लष्टदन्त एवं राष्ट्रदन्त । लष्टदन्त का अर्थ है - मनोहर दांत वाला। दूसरे उच्चारण

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