Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अनुत्तरोपपातिकदशा भगवान् के निश्चित आश्वासन देने पर भी गणधर गौतम को सम्यक्त्वमोहनीय कर्म के उदय से इस प्रकार की चिन्ता हो गई थी कि कदाचित् मैं सिद्धपद न पा सकूँगा। उक्त चिन्ता के निवारण के लिए वे अष्टापद पर गए।
गणधर गौतम के जीवन-सम्बन्ध में अनेक वर्णन उपलब्ध हैं। विद्वान् विचारकों एवं संशोधकों को उक्त प्रसंगों के तथ्यातथ्य का ऐतिहासिक दृष्टि से अनुसंधान करना चाहिए।
___ कुछ भी हो किन्तु यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि इन्द्रभूति गौतम सत्य के महान् शोधक थे। अपना सब कुछ भूलकर वह भगवान् के चरणों में ही सर्वतोभाव से समर्पित हो गए थे। चेल्लणा
राजा श्रेणिक की रानी और वैशाली के अधिपति चेटक राजा की पुत्री।
चेल्लणा सुन्दरी, गुणवती, बुद्धिमती, धर्मप्राणा नारी थी। श्रेणिक राजा को धार्मिक बनाने में जैनधर्म के प्रति अनुरक्त करने में चेल्लणा का बहुत बड़ा योग था।
चेल्लणा का राजा श्रेणिक के प्रति कितना प्रगाढ़ अनुराग था इसका प्रमाण "निरयावलिका" में मिलता है। कोणिक, हल्ल और विहल्ल—ये तीनों चेल्लणा के पुत्र थे।
- जैनागमकथाकोष नन्दा
श्रेणिक की रानी थी। उसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ग्रहण की। ११ अंगों का अध्ययन किया। २० वर्ष तक संयम का पालन किया। अन्त में संथारा करके मोक्ष प्राप्त किया। विपुलगिरि
राजगृह नगर के समीप का एक पर्वत। आगमों में अनेक स्थलों पर इसका उल्लेख मिलता है। बहुत से साधकों ने यहाँ पर संलेखना व संथारा किया था। स्थविरों की देखरेख में घोर तपस्वी यहाँ आकर संलेखना करते
थे।
जैन ग्रन्थों में इन पाँच पर्वतों का उल्लेख मिलता है१. वैभारगिरि २. विपुलगिरि ३. उदयगिरि ४. सुवर्णगिरि ५. रत्नगिरि महाभारत में पांच पर्वतों के नाम ये हैं वैभार, वाराह, वृषभ, ऋषिगिरि और चैत्यक। वायुपुराण में भी पांच पर्वतों का उल्लेख मिलता है । जैसे—वैभार, विपुल, रत्नकूट, गिरिव्रज और रत्नाचल।
भगवतीसूत्र के शतक २, उद्देश ५ में राजगृह के वैभारपर्वत के नीचे महातपोपतीरप्रभव नाम के उष्णजल प्रस्रवण—निर्झर का उल्लेख है, जो आज भी विद्यमान है।
बौद्ध ग्रन्थों में इस निर्झर का नाम 'तपोद' मिलता है, जो सम्भवतः तप्तोदक' से बना होगा। चीनी यात्री फाहियान ने भी इसको देखा था।