Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
अनुत्तरौपपातिकदशा
निर्वाण-रूप अलौकिक पद की प्राप्ति नहीं हो सकती। उनका क्षय या तो विपाकानुभव (उपभोग) से होता है या तप रूपी अग्नि के द्वारा । उपभोग के ऊपर ही निर्भर रहा जाय तो उनका सर्वथा नाश कभी नहीं हो सकता, क्योंकि उनके उपभोग के साथ-साथ नये-नये कर्म सञ्चित होते रहते हैं । अतः तपोऽग्नि से ही उनका क्षय करना चाहिए। अतः स्पष्ट है कि सम्यग्दर्शन के साथ-साथ सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र का तथा विशेषतः तप का आसेवन आवश्यक है।
५०
इस प्रकार ज्ञान और चारित्र की सहायता से धन्य अनगार और उनके समान अन्य महापुरुष या तो सम्पूर्ण कर्मों के क्षीण होने पर मुक्ति प्राप्त करते हैं अथवा कुछ कर्म शेष रह जाएँ और आयुष्य समाप्त हो जाए तो अनुत्तर विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं। जो इन विमानों में उत्पन्न होते हैं वे अवश्य ही एक-दो भवों में मोक्ष-गामी होते हैं। अतएव प्रस्तुत आगम में उन्हीं महान् व्यक्तियों का वर्णन किया गया है, जो उक्त विमानों में उत्पन्न हुए हैं।
इस सूत्र में अन्तिम शिक्षा यह प्राप्त होती है कि उक्त महर्षियों ने महाघोर तप करते हुए भी एकादशाङ्ग सूत्रों का अध्ययन किया। अतः प्रत्येक साधक को योग्यतापूर्वक शास्त्राध्ययन में प्रयत्नशील होना चाहिए, जिससे वह अनुक्रम से निर्वाण-पद की प्राप्ति कर सके ।
परिशेष
अणुत्तरोववाइयदसाणं एगो सुयक्खंधो। तिण्णि वग्गा । तिसु चेव दिवसेसु उद्दिसिज्जंति । तत्थ पढमे वग्गे दस उद्देगा। विइए वग्गे तेरस उद्देसगा । तइए वग्गे दस उद्देसगा। सेसं जहा नायाधम्मकहाणं तहा नेयव्वं ।
अनुत्तरौपपातिकदशा का एक श्रुत-स्कन्ध है। तीन वर्ग हैं। तीन दिनों में उद्दिष्ट होता है— अर्थात् पढ़ाया जाता है। उसके प्रथम वर्ग में दश उद्देशक हैं, द्वितीय वर्ग में तेरह उद्देशक हैं, तृतीय वर्ग में दश उद्देशक हैं। शेष वर्णन जो प्रस्तुत अंग में साक्षात् रूप से नहीं कहा गया है, उसे ज्ञाताधर्मकथासूत्र के समान समझ लेना चाहिए ।