Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अनुत्तरौपपातिकदशा
जम्बूकुमार रखा।
सुधर्मास्वामी की दिव्य वाणी से जम्बूकुमार के मन में वैराग्य जागा। अनासक्त जम्बू को माता-पिता के अत्यन्त आग्रह से विवाह स्वीकृत करना पड़ा और आठ इभ्य-वर सेठों की कन्याओं के साथ विवाह करना पड़ा।
विवाह की प्रथम रात्रि में जम्बूकुमार अपनी आठ नव विवाहिता पत्नियों को प्रतिबोध दे रहे थे। उस समय एक चोर चोरी करने को आया। उसका नाम प्रभव था। जम्बूकुमार की वैराग्यपूर्ण वाणी श्रवण कर वह भी प्रतिबुद्ध हो गया।
५०१ चोर, ८ पत्नियाँ, पत्नियों के १६ माता-पिता, स्वयं के २ माता-पिता और स्वयं जम्बूकुमार—इस प्रकार ५२८ ने एक साथ सुधर्मा के पास दीक्षा ग्रहण की।
जम्बूकुमार १६ वर्ष गृहस्थ में रहे, २० वर्ष छद्मस्थ रहे, ४४ वर्ष केवली पर्याय में रहे। ८० वर्ष की आयु भोग कर जम्बूस्वामी अपने पाट पर प्रभव को स्थापित कर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुए। इस अवसर्पिणी काल के यही अन्तिम केवली थे। अंग
साक्षात् जिनभाषित एवं गणधर-निबद्ध जैन सूत्र-साहित्य अंग कहलाता है। आचारांग से लेकर विपाकश्रुत तक के ग्यारह अंग तो अभी तक भी विद्यमान हैं, परन्तु वर्तमान में बारहवाँ अंग अनुपलब्ध है, जिसका नाम 'दृष्टिवाद' है। 'दृष्टिवाद'-चतुर्दश पूर्वधर आचार्य भद्रबाहु तथा दश पूर्वधर वज्रस्वामी के बाद में सारा पूर्व साहित्य अर्थात् सारा 'दृष्टिवाद' विच्छिन्न हो गया। अन्तकृद्दशा
यह आठवाँ अंग-सूत्र है, जिसमें अपनी आत्मा का अधिकाधिक विकास करके अपने वर्तमान जीवनकाल में ही सम्पूर्ण आत्म-सिद्धि का लाभ पाने वाले और अन्ततः मुक्त होने वाले साधकों की जीवन-चर्या का तपोमय सुन्दर वर्णन है। अनुत्तरौपपातिकदशा
यह नवम अंग-सूत्र है, जिसमें तेतीस महापुरुषों की तपोमय जीवन-चर्या का सुन्दर वर्णन है। धन्य अनगार की महती तपोमयी साधना का सांगोपांग वर्णन है। इसमें वर्णित पुरुष अनुत्तरौपपाती हुए हैं, अर्थात् विजयादि अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए हैं और भविष्य में एक भव अर्थात् —मनुष्य-भव पाकर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होंगे। गुणशिलक (गुणशील) चैत्य
राजगृह नगर के बाहर ईशानकोण में एक चैत्य (उद्यान) था।
राजगृह के बाहर अन्य बहुत से उद्यान होंगे, परन्तु भगवान् महावीर गुणशिलक उद्यान में ही विराजित होते थे।
यहाँ पर भगवान् के समक्ष सैकड़ों श्रमण और श्रमणियाँ तथा हजारों श्रावक-श्राविकाएँ बनी थीं। वर्तमान में 'गुणावा' जो नवादा स्टेशन से लगभग तीन मील पर है, प्राचीन काल का यही गुणशिलक चैत्य माना जाता है।