Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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ततीय वर्ग
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वापिस चली गई।
सुनक्षत्र ने प्रव्रज्या अंगीकार की। अनन्तर सुनक्षत्र ने अन्य किसी समय मध्य रात्रि में धर्मजागरण करते हुए विचारणा की, जिस प्रकार स्कन्दक ने की थी। बहुत वर्षों तक संयम का पालन किया। गौतम की पृच्छा। यावत् सुनक्षत्र अनगार सर्वार्थसिद्ध विमान में देवरूप से उत्पन्न हुए। तेतीस सागरोपम की स्थिति हुई।
गौतम ने पूछा "भगवन् ! वह सुनक्षत्रदेव देवलोक से च्यवन कर कहाँ पैदा होगा?" यावत् "गौतम ! महाविदेहवर्ष से सिद्ध होगा।"
विवेचन इस सूत्र में पूर्वरात्रापररात्रकाल' शब्द आया है जिसका अर्थ मध्यरात्रि है। यही समय एक ऐसा है जब वातावरण एकदम प्रशान्त रहता है। अतः धर्म-जागरण करने वालों का चित्त इस समय एकाग्र हो जाता है
और उसमें पूर्ण स्थिरता विद्यमान होती है। ऐसे ही समय में विचारधारा बहुत स्वच्छ रहती है और मस्तिष्क में बहुत ऊँचे विचार उत्पन्न होते हैं । यही कारण है कि धन्य आदि अनगारों के उस समय के विचार उनको सन्मार्ग की ओर ले गये।