Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana Publisher: Agam Prakashan SamitiPage 52
________________ तृतीय वर्ग १७ लेने वालों) को वह लेन-देन करने में कुशल थी। उसके यहाँ भोजन करने के अनन्तर भी बहुत-सा अन्न-पानी बाकी बच जाता था। उसके घर में बहुत से दास-दासी आदि सेवक और गाय-भैंस और बकरी आदि पशु थे। वह बहुतों से भी पराभव को प्राप्त नहीं होती थी और जनता में सम्माननीय थी। उस भद्रा सार्थवाही के धन्यकुमार नामका एक पुत्र था, जो अहीन एवं परिपूर्ण पाँचों इन्द्रियों से युक्त शरीरवाला था। अर्थात् उसका शरीर (लक्षण की अपेक्षा) खामियों से रहित और (स्वरूप की अपेक्षा) परिपूर्ण था। वह स्वस्तिक आदि लक्षण, तिल मष आदि व्यंजन और गुणों से युक्त था। माप, भार और आकार-विस्तार से परिपूर्ण और सुन्दर बने हुए समस्त अंगों वाला था। उसका आकार चन्द्र के समान सौम्य और दर्शन कान्त और प्रिय था। इस प्रकार उसका रूप बहुत सुन्दर था। ___ महाबल कुमार की तरह क्षीरधात्री (दूध पिलाने वाली धाय) आदि पांच धायें उसका पालन-पोषण आदि करती थीं तथा जिस प्रकार महाबल ने बहत्तर कलाओं का अध्ययन किया उसी प्रकार धन्यकुमार को माता-पिता ने शुभ तिथि, करण और मुहूर्त में कलाचार्य के पास भेजा। तत्पश्चात् कलाचार्य ने धन्य (धन्ना) कुमार को गणित जिन में प्रधान है, ऐसी लेख आदि शकुनिरुत (पक्षियों के शब्द) तक की बहत्तर कलाएँ सूत्र से, अर्थ से और प्रयोग से सिद्ध करवाई तथा सिखलाईं। वे कलाएँ इस प्रकार हैं – (१) लेखन (२) गणित (३) रूप बदलना (४) नाटक (५) गायन (६) वाद्य बजाना (७) स्वर जानना (८) वाद्य सुधारना (९) समान ताल जानना (१०) जुआ खेलना (११) लोगों के साथ वादविवाद करना (१२) पासों से खेलना (१३) चौपड़ खेलना (१४) नगर की रक्षा करना (१५) जल और मिट्टी के संयोग से वस्तु का निर्माण करना (१६) धान्य निपजाना (१७) नया पानी उत्पन्न करना, पानी को संस्कार करके शुद्ध करना एवं उष्ण करना (१८) नवीन वस्त्र बनाना, रंगना, सीना और पहनना (१९) विलेपन की वस्तु को पहचानना, तैयार करना, लेपन करना आदि (२०) शय्या बनाना, शयन करने की विधि जानना आदि (२१) आर्याछन्द को पहचानना और बनाना (२२) पहेलियाँ बनाना और बूझना (२३) मागधिका अर्थात् मगध देश की भाषा में गाथा आदि बनाना (२४) प्राकृत भाषा में गाथा आदि बनाना (२५) गीति छन्द बनाना (२६) श्लोक (अनुष्टप् छन्द) बनाना (२७) सुवर्ण बनाना, उसके आभूषण बनाना, पहनना आदि (२८) नई चाँदी बनाना, उसके आभूषण बनाना, पहनना आदि (२९) चूर्ण-गुलाल, अबीर आदि बनाना और उसका उपयोग करना (३०) गहने घड़ना पहनना आदि (३१) तरुणी की सेवा करना, प्रसाधन करना (३२) स्त्री के लक्षण जानना (३३) पुरुष के लक्षण जानना (३४) अश्व के लक्षण जानना (३५) हाथी के लक्षण जानना (३६) गाय, बैल के लक्षण जानना (३७) मुर्गी के लक्षण जानना (३८) छत्र-लक्षण जानना (३९) दंड-लक्षण जानना (४०) खड्ग-लक्षण जानना (४१) मणि के लक्षण जानना (४२) काकणीरत्न के लक्षण जानना (४३) वास्तुविद्या – मकान-दुकान आदि इमारतों की विद्या (४४) सेना के पड़ाव का प्रमाण आदि जानना (४५) नया नगर बसाने आदि की कला (४६) व्यूह— मोर्चा बनाना (४७) विरोधी के व्यूह के सामने अपनी सेना का मोर्चा रचना (४८) सैन्य संचालन करना (४९) प्रतिचारशत्रुसेना के समक्ष अपनी सेना को चलाना (५०) चक्रव्यूह— चाक के आकार में मोर्चा बनाना (५१) गरुड के आकार का व्यूह बनाना (५२) शकटव्यूह रचना (५३) सामान्य युद्ध करना (५४) विशेष युद्ध करना (५५) अत्यंत विशेष युद्ध करना (५६) अट्टि (यष्टि या अस्थि) से युद्ध करना (५७) मुष्टियुद्ध करना (५८) बाहुयुद्ध करनाPage Navigation
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