Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana Publisher: Agam Prakashan SamitiPage 69
________________ ३४ अनुत्तरीपपातिकदशा धण्णस्स गीवाए जाव' से जहा जाव' करगगीवा इ वा, कुंडियागीवा इ वा उच्चट्ठवणए इ वा एवामेव जाव। धण्णस्स णं अणगारस्स हणुयाए जावे से जहा जाव लाउयफले इ वा, हकुवफले इ वा, अंबगट्ठिया इवा, एवामेव जाव। धण्णस्स णं अणगारस्स उट्ठाणं जाव' से जहा जाव सुक्कजलोया इ वा, सिलेसगुलिया इ वा, अलत्तगुलिया इ वा एवामेव जाव। धण्णस्स णं अणगारस्स जिब्भाए जाव से जहा जाव वडपत्ते इ वा पलासपत्ते इ वा, सागपत्ते इ वा एवामेव जाव। धन्य अनगार की बाहु अर्थात् कंधे से नीचे के भाग (भुजाओं) का तपोजन्य रूप-लावण्य इस प्रकार का हो गया था— जैसे शमी (खेजड़ी) वृक्ष की सूखी हुई लम्बी-लम्बी फलियाँ हों, बाहाया (अमलतास) वृक्ष की सूखी हुई लम्बी-लम्बी फलियाँ हों, अथवा अगस्तिक (अगतिया) वृक्ष की सूखी हुई फलियाँ हों। इसी प्रकार धन्य अनगार की भुजाएँ भी मांस और शोणित से रहित होकर, सूख गई थीं। उनमें अस्थि, चर्म और शिराएँ ही शेष रह गई थीं, मांस और शोणित उनमें नहीं रह गया था। धन्य अनगार के कुहनी से नीचे के भागरूप हाथों की अवस्था तप के कारण इस प्रकार की हो गई थीजैसे सूखा छाण (कंडा) हो, वड का सूखा पत्ता हो या फ्लाश का सूखा पत्ता हो । इसी प्रकार धन्य अनगार के हाथ भी सूख गये थे, मांस और शोणित से रहित हो गए थे। उनमें अस्थि, चर्म और शिराएँ ही शेष रह गई थीं। मांस और शोणित उनमें नहीं था। धन्य अनगार के हाथों की अंगुलियों का उग्र तप के कारण इस प्रकार का स्वरूप हो गया था—जैसेकलाय अर्थात् मटर की सूखी फलियाँ हो, मूंग की सूखी फलियाँ हों अथवा उड़द की सूखी फलियाँ हों। उन कोमल फलियों को तोड़ कर, धूप में सुखाने पर जिस प्रकार वे सूख जाती हैं, कुम्हला जाती हैं, उसी प्रकार धन्य अनगार के हाथों की अंगुलियाँ भी सूख गई थीं, उनमें मांस और शोणित नहीं रह गया था। अस्थि, चर्म और शिराएँ ही शेष रह गई थीं। धन्य अनगार की ग्रीवा (गर्दन) तप के कारण इस प्रकार की हो गई थी— जैसे—करक (करवा—जलपात्र विशेष) का कांठा (गर्दन) हो, छोटी कुण्डी (पानी की झारी) की गर्दन हो, उच्च स्थापनक सुराही की गर्दन हो। इसी प्रकार धन्य अनगार की गर्दन मांस और शोणित से रहित होकर सूखी-सी और लम्बी सी हो गई थी। धन्य अनगार की हनु अर्थात् ठोड़ी का तपोजन्य रूप-लावण्य इस प्रकार का हो गया था— जैसे—तुम्बे का सूखा फल हो, रकुब नामक एक वनस्पति अर्थात् हिंगोटे का सूखा फल हो अथवा आम की सूखी गुठली हो। इस प्रकार धन्य अनगार की हनु अर्थात् ठोड़ी भी मांस और शोणित से रहित होकर सूख गई थी। धन्य अनगार के ओष्ठों का अर्थात् होठों का तपोजन्य रूप-लावण्य इस प्रकार का हो गया था— जैसे सूखी जोंक हो, सूखी श्लेष्म की गुटिका अर्थात् गोली हो, अलते की गुटिका अर्थात् अगरबत्ती के समान लाख के रस की लम्बी बत्ती हो। इसी प्रकार धन्य अनगार के होठ सूखकर मांस और शोणित से रहित हो गए थे। १-१२.—देखिए वर्ग ३, सूत्र ७.Page Navigation
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