Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana Publisher: Agam Prakashan SamitiPage 79
________________ ४४ अनुत्तरोपपातिकदशा है उसको परिनिर्वाण-प्रत्यय कायोत्सर्ग कहते हैं। मृत साधु के शरीर का परिष्ठापन करना भी परिनिर्वाण कहा जाता है। यहाँ समीपस्थ स्थविरों ने धन्य अनगार की मृत्यु देखकर यही कायोत्सर्ग (ध्यान) किया। फिर उनके वस्त्र-पात्र आदि उपकरण उठाकर लाये और श्रमण भगवान् महावीर के पास आकर और उनको धन्य अनगार के समाधिमरण का समस्त वृत्तान्त सुना दिया। उनके गुणों का गान किया। उनके उपशम-भाव की प्रशंसा की तथा उनके वस्त्र आदि उपकरण श्री भगवान् को सौंप दिए। उस समय गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना की और उनसे प्रश्न किया कि हे भगवन् ! आपका विनीत शिष्य धन्य अनगार समाधिमरण प्राप्त कर कहाँ गया, कहाँ उत्पन्न हुआ है ? वहाँ कितने काल तक उसकी स्थिति होगी और तदनन्तर वह कहाँ उत्पन्न होगा? उत्तर में श्रमण भगवान् ने कहा हे गौतम ! मेरा विनयी शिष्य धन्य अनगार समाधिमरण प्राप्त कर सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न हुआ है। वहाँ उसकी तेतीस सागरोपम की स्थिति है। वहाँ से च्युत होकर वह महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर मोक्ष प्राप्त करेगा, अर्थात् सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होकर परिनिर्वाण प्राप्त कर सर्व दुःखों का अन्त कर देगा। इस सूत्र से हमें यह शिक्षा प्राप्त होती है कि प्रत्येक साधक को आलोचना आदि क्रिया करके समाधि-पूर्वक मृत्यु का सामना करना चाहिए, जिससे वह अन्तिम श्वासोच्छ्वास तक सच्चा आराधक रहे और साक्षात् या परम्परा से मोक्षाधिकारी बन सके।Page Navigation
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