Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अनुत्तरौपपातिकदशा धन्य अनगार का सर्वार्थसिद्ध-गमन
१८–तए णं तस्स धण्णस्स अणगारस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्म-जागररियं० इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था
एवं खलु अहं इमेणं उरालेणं जाव [तवोक्कमेणं धमणिसंतए जाए] जहा खंदओ तहेव चिंता। आपुच्छणं। थेरेहिं सद्धिं विउलं दुरूहइ। मासिया संलेहणा। नवमासा परियाओ जाव[पाउणित्ता] कालेमासे कालं किच्चा उ8 चंदिम जाव [सूर-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं जाव] नवयगेवेजे विमाण-पत्थडे उद्धं दूरं वीईवइत्ता सव्वट्ठसिद्धे विमाणे देवत्ताए उववण्णे।
थेरा तहेव ओयरंति जाव' इमे से आयारभंडए।
भंते ! त्ति भगवं गोयमे तहेव आपुच्छति, जहा खंदयस्स भगवं वागरेइ, जाव' सव्वट्ठसिद्धे विमाणे उववण्णे।
"धण्णस्स णं भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?" "गोयमा ! तेत्तीस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।" "से णं भंते ! ताओ देवलोगाओ कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववजिहिइ ?" "गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ।" तं एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते।
॥पढमं अज्झयणं समत्तं . तत्पश्चात् किसी दिन रात्रि के मध्य भाग में धन्य अनगार के मन में धर्म-जागरिका (धर्म-विषयक विचारणा) करते हुए ऐसी भावना उत्पन्न हुई
मैं इस प्रकार के उदार तपःकर्म से शुष्क-नीरस शरीर वाला हो गया हूँ, इत्यादि यावत् जैसे स्कन्दक ने विचार किया था, वैसे ही चिन्तना की, आपृच्छना की। स्थविरों के साथ विपुलगिरि पर आरूढ हुए, एक मास की संलेखना की। नौ मास की दीक्षापर्याय यावत् पालन कर काल करके चन्द्रमा से ऊपर यावत् सूर्य ग्रह नक्षत्र तारा नवग्रैवेयक विमान-प्रस्तटों को पार कर सर्वार्थसिद्ध विमान में देवरूप से उत्पन्न हुए।
धन्य मुनि के स्वर्ग-गमन होने के पश्चात् परिचर्चा करने वाले स्थविर मुनि विपुलपर्वत से नीचे उतर यावत् 'धन्य मुनि के ये धर्मोपकरण हैं' उन्होंने भगवान् से इस प्रकार कहा।
भगवान् गौतम ने 'भंते !' ऐसा कह कर भगवान् से उसी प्रकार प्रश्न किया, जिस प्रकार स्कन्दक के अधिकार में किया था।
भगवान् महावीर ने उसका उत्तर दिया, यावत् धन्य अनगार सर्वार्थसिद्ध विमान में देव रूप से उत्पन्न हुआ है। "भंते ! धन्य देव की स्थिति कितने काल की कही है ?" "हे गौतम ! तेतीस सागरोपम की स्थिति कही है।
अणुत्तरोववाइयदसा, वर्ग १. सूत्र ४ अणुत्तरोववाइयदसा वर्ग १, सूत्र ४
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