Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana Publisher: Agam Prakashan SamitiPage 51
________________ अनुत्तरौपपातिकदशा तत्थ णं कायंदीए नयरीए भद्दा नामं सत्थवाही परिवसइ अड्डा जाव [ दित्ता वित्ता वित्थिणविउल-भवण-सयणासण-जाणवाहणा बहुधण-जायरूव-रयया आओग-पओग-संपउत्ता विच्छड्डिय-पउरभत्तपाणा बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलग-प्पभूया बहुजणस्स अपरिभूया]। तीसे णं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते धण्णे नामं दारए होत्था, अहीण जाव [पंचिंदियसरीरे लक्खणवंजण-गुणोववेए माणुम्माणपमाणपडिपुण्णसुजायसव्वंगसुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरूवे] पंचधाईपरिग्गहिए।तं जहा—खीरधाईए जहा महब्बलो जाव बावत्तरि कलाओ अहीए, तहा धण्णं कुमार अम्मापियरो सातिरेगट्ठवासजायगं चेव गब्भट्ठमे वासे सोहणंसि तिहिकरण-नक्खत्त मुहुत्तंसि कलायरियस्स उवणेन्ति। तते णं से कलायरिए धण्णं कुमारं लेहाइयाओ गणितप्पहाणाओ सउणरुतपजवसाणाओ बावत्तरि कलाओ सुत्तओ अ अत्थओ अकरणओ य सेहावेति, सिक्खावेति। तं जहा-(१) लेहं (२) गणियं (३) रूवं (४) नट्टे (५) गीयं (६) वाइयं (७) सरगयं (८) पोक्खरगयं (९) समतालं (१०) जूयं (११) जणवायं (१२) पासयं (१३) अट्ठावयं (१४) पोरेकच्चं (१५) दगमट्टियं (१६) अन्नविहिं (१७) पाणविहिं (१८) वत्थविहिं (१९) विलेवणविहिं (२०) सयणविहिं (२१) अजं (२२) पहेलियं (२३) मागहियं (२४) गाहं ( २५) गीइयं (२६) सिलोयं (२७) हिरण्णजुत्तिं (२८) सुवन्नजुत्तिं (२९) चुनजुत्तिं (३०) आभरणविहिं (३१) तरुणीपडिकम्मं (३२) इथिलक्खणं (३३) पुरिसलक्खणं (३४) हयलक्खणं (३५) गयलक्खणं (३६) गोणलक्खणं (३७) कुक्कुडलक्खणं (३८) छत्तलक्खणं (३९) दंडलक्खणं (४०) असिलक्खणं (४१) मणिलक्खणं (४२) कागणिलक्खणं (४३) वत्थुविजं (४४) खंधारमाणं (४५) नगरमाणं (४६) वूहं (४७) पडिवूहं (४८) चारं (४९) पडिचारं (५०) चक्कवूहं (५१) गरुलवूहं (५२) सगडवूहं (५३) जुद्धं (५४) निजुद्धं (५५) जुद्धातिजुद्धं (५६) अठिजुद्धं (५७) मुठिजुद्धं (५८) बाहुजुद्धं (५९) लयाजुद्धं (६०) ईसत्थं (६१) छरुप्पवायं (६२) धणुव्वेयं (६३) हिरन्नपार्ग (६४) सुवन्नपागं (६५) सुत्तखेडं (६६) वट्टखेडं (६७) नालियाखेडं (६८) पत्तच्छेजं (६९) कडगच्छेज्जं (७०) सजीवं (७१) निजीवं (७२) सउणरुअमिति। तए णं से धण्णे कुमारे बावत्तरिकलापंडिए णवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारसविहिप्पगारदेसीभासाविसारए गीइरई गंधव्वनट्टकुसले हयजोही गयजोही बाहुजोही बाहुप्पमही अलं भोगसमत्थे साहसिए वियालचारी जाए यावि होत्था। सुधर्मास्वामी ने उत्तर दिया - जम्बू ! इस प्रकार उस काल और उस समय में काकन्दी नामक एक नगरी थी। वह नगरी ऋद्ध स्तिमित (स्थिर) और समृद्ध थी। वहाँ सहस्राम्रवन नाम का एक उद्यान था, जिसमें समस्त ऋतुओं के फल और फूल सदा रहते थे। उस समय वहाँ जितशत्रु नामक राजा राज्य करता था। उस काकन्दी नगरी में भद्रा नामक एक सार्थवाही रहती थी। वह धनी तेजस्वी विस्तृत और विपुल भवनों, शय्याओं; आसनों, यानों और वाहनों वाली थी तथा सोना चाँदी आदि धन की बहुलता से युक्त थी। अधमर्णों (ऋण १. देखिए वर्ग १, सूत्र १.Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134