Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana Publisher: Agam Prakashan SamitiPage 50
________________ तच्चो वग्गो प्रथम अध्ययन धन्य उत्क्षेप १- जइ णं भंते ! समणेणं जावसंपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते, तच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समजेणं जाव' संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते? एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता। तं जहा धण्णे य सुणक्खत्ते य इसिदासे अ आहिए । पेल्लए रामपुत्ते च चंदिमा पिट्ठिमाइ य ॥ पेढालपुत्ते अणगारे नवमे पोट्ठिले वि य । वेहल्ले दसमे पुत्ते इमे य दस आहिया ॥ जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं जाव' संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? - जम्बूस्वामी ने श्री सुधर्मास्वामी के समक्ष जिज्ञासा प्रस्तुत की – भन्ते ! यदि श्रमण यावत् निर्वाणसंप्राप्त भगवान् महावीर ने अनुत्तरौपपातिकदशा के द्वितीय वर्ग का यह अर्थ कहा है, तो भन्ते ! श्रमण यावत् निर्वाणसंप्राप्त भगवान् महावीर ने अनुत्तरौपपातिकदशा के तृतीय वर्ग का क्या अर्थ कहा है ? ___ सुधर्मास्वामी ने समाधान किया—जम्बू ! श्रमण यावत् निर्वाणसंप्राप्त भगवान् महावीर ने अनुत्तरौपपातिकदशा के तृतीय वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं, जो इस प्रकार हैं - १. धन्यकुमार, २. सुनक्षत्र, ३. ऋषिदास, ४. पेल्लक, ५. रामपुत्र, ६. चन्द्रिक, ७. पृष्टिमातृक, ८. पेढालपुत्र, ९. पोष्टिल्ल, १०. वेहल्ल। जम्बूस्वामी ने फिर पूछा- भन्ते ! यदि श्रमण यावत् निर्वाणसंप्राप्त भगवान् महावीर ने अनुत्तरौपपातिकदशा के तृतीय वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं, तो भन्ते ! श्रमण यावत् निर्वाणसंप्राप्त भगवान् महावीर ने अनुत्तरौपपातिकदशा के तृतीय वर्ग के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? धन्यकुमार २–एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं कायंदी नामं नयरी होत्था, रिद्धस्थिमियसमिद्धा। सहसंबवणे उज्जाणे सव्वउउ जाव[पुष्फ-फल-समिद्धे] जियसत्तू राया। १-२-३-४-५ – सूत्र २, पृ. १Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134