Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 48
________________ द्वितीय वर्ग द्वितीय वर्ग के तेरह अध्ययन कहे हैं, जो इस प्रकार हैं - १. दीर्घसेन, २. महासेन, ३. लष्टदन्त (लट्ठदन्त), ४. गूढदन्त, ५. शुद्धदन्त, ६. हल्ल, ७. द्रुम, ८. द्रुमसेन, ९. महाद्रुमसेन, १०. सिंह, ११. सिंहसेन, १२. महासिंहसेन, १३. पुण्यसेण (पुण्यसेन अथवा पूर्णसेन)। भन्ते ! यदि श्रमण यावत् निर्वाणसंप्राप्त भगवान् महावीर ने अनुत्तरौपपातिकदशा के द्वितीय वर्ग के तेरह अध्ययन कहे हैं, तो भन्ते ! द्वितीय वर्ग के प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत् निर्वाणसंप्राप्त भगवान् महावीर ने क्या अर्थ कहा है ? दीर्घसेन आदि जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नाम का नगर था। गुणशीलक चैत्य था। वहाँ का राजा श्रेणिक था। धारिणी देवी रानी थी। उसने सिंह का स्वप्न देखा। जाली कुमार के सदृश जन्म, बाल्यकाल और कला-ग्रहण आदि जान लेना चाहिए। विशेष यह है कि कुमार का नाम दीर्घसेन था। शेष समस्त वर्णन जाली कुमार के समान है। यावत् वह सब दुःखों का अन्त करेगा। इस तरह तेरह ही राजकुमारों का नगर राजगृह था। पिता श्रेणिक था और माता धारिणी थी। तेरह ही कुमारों की दीक्षापर्याय सोलह वर्ष थी। अनुक्रम से वे दो' विजय में, दो वैजयन्त में, दो जयन्त में, दो अपराजित में और शेष महाद्रुमसेन आदि पाँच सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न हुए। जम्बू ! इस प्रकार श्रमण यावत् निर्वाणसंप्राप्त भगवान् महावीर ने अनुत्तरौपपातिकदशा के द्वितीय वर्ग का यह अर्थ कहा है। दोनों वर्गों में एक-एक मास की संलेखना समझनी चाहिए। विवेचन – प्रथम वर्ग की समाप्ति के अनन्तर श्री जम्बूस्वामी ने श्री सुधर्मास्वामी से सविनय निवेदन किया— भगवन् ! मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् ने अनुत्तरौपपातिकदशा के द्वितीय वर्ग का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? प्रश्न के उत्तर में सुधर्मास्वामी ने कहा- हे जम्बू ! मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् ने अनुत्तरौपपातिकदशा के द्वितीय वर्ग के तेरह अध्ययन प्रतिपादन किये हैं। तेरह ही राजकुमार श्रेणिक राजा और धारिणी देवी के आत्मज अर्थात् पुत्र थे। ये तेरह महर्षि सोलह-सोलह वर्ष तक संयम का पालन कर अनुत्तरविमानों में उत्पन्न हुए। यहाँ जो विवरण लिया गया है वह संक्षिप्त में लिया गया है, क्योंकि 'ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र' के मेघकुमार के समान ही यहाँ का वर्णन है। इसके विषय में प्रथम अध्ययन में विवरण आ चुका है। अतः विशेष जानने की इच्छा वालों को उक्त सूत्र के ही प्रथम अध्ययन का स्वाध्याय करना चाहिए। __ यहाँ एक बात विशेष ज्ञातव्य है कि इस सूत्र के दोनों वर्गों में उल्लिखित तेईस मुनियों ने एक-एक मास का पादपोपगमन अनशन किया था और तदनन्तर वे उक्त अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए। १. दीर्घसेन और महासेन २. लष्टदन्त और गूढदन्त ३. शुद्धदन्त और हल्ल ४. द्रुम और द्रुमसेन

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