Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अनुत्तरौपपातिकदशा
करण्डिए), बत्तीस करोटिकाधारिणी दासियाँ, बत्तीस धात्रियाँ (दूध पिलाने वाली धाय) यावत् बत्तीस अङ्कधात्रियाँ, बत्तीस अङ्गमर्दिका (शरीर का अल्प मर्दन करने वाली दासियाँ), बत्तीस स्नान कराने वाली दासियाँ, बत्तीस अलङ्कार पहनाने वाली दासियाँ, बत्तीस चन्दन घिसनेवाली दासियाँ, बत्तीस ताम्बूलचूर्ण पीसने वाली, बत्तीस कोष्ठागार की रक्षा करने वाली, बत्तीस परिहास करने वाली, बत्तीस सभा में पास रहने वाली, बत्तीस नाटक करने वाली, बत्तीस कौटुम्बिक (साथ जाने वाली), बत्तीस रसोई बनाने वाली, बत्तीस भण्डार की रक्षा करने वाली, बत्तीस तरुणियाँ, बत्तीस पुष्प धारण करने वाली (मालिने), बत्तीस पानी भरने वाली, बत्तीस बलि करने वाली, . बत्तीस शय्या बिछाने वाली, बत्तीस आभ्यन्तर और बत्तीस बाह्य प्रतिहारियाँ, बत्तीस माला बनाने वाली और बत्तीस पेषण करने (पीसने) वाली दासियाँ दीं। इसके अतिरिक्त बहुत-सा हिरण्य, सुवर्ण, कांस्य, वस्त्र तथा विपुल धन, कनक यावत् सारभूत धन दिया, जो सात पीढ़ी तक इच्छापूर्वक देने और भोगने के लिए पर्याप्त था। तब धन्यकुमार ने प्रत्येक पत्नी को एक-एक हिरण्यकोटि, एक-एक स्वर्णकोटि, इत्यादि पूर्वोक्त सभी वस्तुएँ दे दीं यावत् एक-एक पेषणकारी दासी तथा बहुत-सा हिरण्य-सुवर्ण आदि विभक्त कर दिया यावत् ऊँचे प्रासादों में जिनमें मृदंग बज रहे थे, यावत् धन्यकुमार सुखभोगों में लीन हो गया।
विवेचन उक्त सूत्र में धन्यकुमार के बालकपन, विद्याध्ययन, विवाहसंस्कार और सांसारिक सुखों के अनुभव के विषय में कथन किया गया है। यह सब वर्णन ज्ञातासूत्र के प्रथम अथवा पाँचवें अध्ययन के साथ मिलता है, अतः जिज्ञासु वहीं से अधिक जान लें। धन्यकुमार का प्रव्रज्या-प्रस्ताव
४ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे जाव (भगवं महावीरे) समोसढे। परिसा निग्गया। राया जहा कोणिओ तहा जियसत्तू निग्गओ। तए णं तस्स धण्णस्स तं महया जहा जमाली तहा निग्गओ।नवरं पायचारेणं जाव[एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, एग० करित्ता आयंते चोक्खे, परमसुइब्भूए, अंजलिमउलियहत्यो जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ । तए णं समणे भगवं महावीरे धण्णस्स कुमारस्स तीसे य महतिमहालियाए इसि० जाव धम्मकहा० जाव परिसा पडिगया।
तए णं धण्णे कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा, णिसम्म हट्ठ-तुटु जाव हियए, उट्ठाए उढेइ, उठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव णमंसित्ता एवं वयासी
सहाहामि णं भंते ! णिग्गंथं पावयणं । पत्तियामिणं भंते ! णिग्गंथं पाबयणं । रोएमिणं भंते ! णिग्गंथं पावयणं । अब्भुडेमि णं भंते ! णिग्गंथं पावयणं ।
एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! जाव से जहेयं तुब्भे वयह, जं] नवरं
अम्मयं भदं सत्थवाहिं आपुच्छामि। तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए जाव[मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगरियं] पव्वयामि।