Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 56
________________ तृतीय वर्ग २१ अतीव देदीप्यमान था। उसे देखते ही दर्शक के नयन उसमें चिपक-से जाते थे। उसका स्पर्श सुखप्रद था और रूप शोभा-सम्पन्न था। उसमें सुवर्ण, मणि एवं रत्नों की स्तूपिकाएँ बनी हुई थीं। उसका प्रधान शिखर घंटाओं सहित नाना प्रकार की पाँच वर्णों की पताकाओं से सुशोभित था। वह चहुँ ओर देदीप्यमान किरणों के समूह को फैला रहा था। वह लिपा था, धुला था और चंदोवे से युक्त था यावत् वह भवन गंध की वत्ती जैसा जान पड़ता था। वह चित्त को प्रसन्न करने वाला, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप था—अतीव मनोहर था। इसके पश्चात् भद्रा सार्थवाही ने यावत् एक दिन में बत्तीस इभ्यवरों (श्रेष्ठिप्रवरों) की कन्याओं के साथ धन्यकुमार का पाणिग्रहण—विवाह सम्पन्न कराया। उनको बत्तीस-बत्तीस वस्तुएँ प्रदान की। यथा— [बत्तीस कोटि हिरण्य (चाँदी के सिक्के), बत्तीस कोटि सोनैये (सोने के सिक्के), बत्तीस श्रेष्ठ मुकुट, बत्तीस श्रेष्ठ कुण्डलयुगल, बत्तीस उत्तम हार, बत्तीस उत्तम अर्द्धहार, बत्तीस उत्तम एकसरा हार, बत्तीस मुक्तावली हार, बत्तीस कनकावली हार, बत्तीस रत्नावली हार, बत्तीस उत्तम कड़ों की जोड़ी, बत्तीस उत्तम त्रुटित (बाजूबन्द) की जोड़ी, उत्तम बत्तीस रेशमी वस्त्रयुगल, बत्तीस उत्तम सूती वस्त्रयुगल, बत्तीस टसर वस्त्रयुगल, बत्तीस पट्टयुगल, बत्तीस दुकुलयुगल, बत्तीस श्री, बत्तीस ह्री, बत्तीस धृति, बत्तीस कीर्ति, बत्तीस बुद्धि और बत्तीस लक्ष्मी देवियों की प्रतिमा, बत्तीस नन्द, बत्तीस भद्र, बत्तीस ताड़ वृक्ष, ये सब रत्नमय जानने चाहिए। अपने भवन के केतु (चिह्नरूप) बत्तीस उत्तम ध्वज, दश हजार गायों के एक व्रज (गोकुल) के हिसाब से बत्तीस उत्तम गोकुल, बत्तीस मनुष्यों द्वारा किया जाने वाला एक नाटक होता है—ऐसे बत्तीस उत्तम नाटक, बत्तीस उत्तम घोड़े, ये सब रत्नमय जानना चाहिए। भाण्डागार समान बत्तीस रत्नमय उत्तमोत्तम हाथी, भाण्डागार श्रीधर समान सर्व रत्नमय बत्तीस उत्तम यान, बत्तीस उत्तम युग्य (एक प्रकार का वाहन), बत्तीस शिविकाएं, बत्तीस स्यन्दमानिकाएं, बत्तीस गिल्ली (हाथी की अम्बाड़ी), बत्तीस थिल्लि (घोड़े के पलाण-काठी), बत्तीस उत्तम विकट (खुले हुए) यान, बत्तीस पारियानिक (क्रीडा करने के) रथ, बत्तीस सांग्रामिक रथ, बत्तीस उत्तम अश्व, बत्तीस उत्तम हाथी, दस हजार कुल-परिवार जिसमें रहते हों ऐसे गाँव के हिसाब से बत्तीस गाँव, बत्तीस उत्तम दास, बत्तीस उत्तम दासियाँ, बत्तीस उत्तम किंकर, बत्तीस कंचुकी (द्वाररक्षक), बत्तीस वर्षधर (अन्तःपुर के रक्षक खोजा), बत्तीस महत्तरक (अन्तःपुर के कार्य का विचार करने वाले), बत्तीस सोने के, बत्तीस चाँदी के, बत्तीस सोने-चाँदी के अवलम्बनदीपक (लटकने वाले दीपक हण्डियाँ), बत्तीस सोने के, बत्तीस चाँदी के, बत्तीस सोने-चाँदी के उत्कञ्चन दीपक (दण्ड युक्त दीपक मशाल), इसी प्रकार सोने, चाँदी और सोने-चाँदी इन तीनों प्रकार के बत्तीस पञ्जर-दीपक दिये तथा सोने, चाँदी और सोने-चाँदी के बत्तीस थाल, बत्तीस थालियाँ, बत्तीस मल्लक (कटोरे), बत्तीस तलिका (रकाबियाँ), बत्तीस कलाचिका (चम्मच), बत्तीस तापिकाहस्तक (संडासियाँ), बत्तीस तवे, बत्तीस पादपीठ (पैर रखने के बाजौठ), बत्तीस भिषिका (आसन विशेष), बत्तीस करोटिका (लोटा), बत्तीस पलंग, बत्तीस प्रतिशय्या (छोटे पलंग), बत्तीस हंसासन, बत्तीस क्रौंचासन. बत्तीस गरुडासन, बत्तीस उन्नतासन, बत्तीस अवनतासन, बत्तीस दीर्घासन, बत्तीस भद्रासन, बत्तीस पक्षासन, बत्तीस मकरासन, बत्तीस पद्मासन, बत्तीस दिक्स्वस्तिकासन, बत्तीस तेल के डिब्बे इत्यादि सभी राजप्रश्नीयसूत्र के अनुसार जानना चाहिए, यावत् बत्तीस सर्षप के डिब्बे, बत्तीस कुब्जा दासियाँ इत्यादि सभी औपपातिकसूत्र के अनुसार जानना चाहिए, यावत् बत्तीस पारस देश की दासियाँ, बत्तीस छत्र, बत्तीस छत्रधारिणी दासियाँ, बत्तीस चामर, बत्तीस चामरधारिणी दासियाँ, बत्तीस पंखे, बत्तीस पंखाधारिणी दासियाँ, बत्तीस करोटिका (ताम्बूल के

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