Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अनुत्तरौपपातिकदशा
निक्षेप
जम्बू ! इस प्रकार श्रमण यावत् निर्वाणसंप्राप्त भगवान् महावीर ने अनुत्तरौपपातिकदशा के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है।
विवेचन- यहाँ जाली कुमार का वर्णन प्रतिपादित किया गया है। वह वर्णन यहाँ संक्षेप में किया गया है, क्योंकि इस सूत्र में कथित विषय 'ज्ञातासूत्र' के प्रथम अध्ययन के - जिसमें मेघ कुमार के विषय में कहा गया है— विषय के समान ही है। अर्थात् 'ज्ञातासूत्र' के प्रथम अध्ययन में जिस प्रकार मेघ कुमार के विषय में प्रतिपादन किया गया है, उसी प्रकार इस सूत्र के प्रथम अध्ययन में जाली कुमार के विषय में भी प्रतिपादन समझ लेना चाहिए।
__ यहाँ प्रश्न उपस्थित होता है कि- मेघ कुमार जाली अनगार के समान अनुत्तर विमान में ही उत्पन्न हुआ था तथापि मेघ कुमार का वर्णन अनुत्तरौपपातिकसूत्र में नहीं है और ज्ञातासूत्र में है, ऐसा क्यों ? उत्तर यह है कि मेघ कुमार का वर्णन छठे अंग में इसलिए किया गया है कि उसमें धर्मयुक्त पुरुषों की शिक्षाप्रद जीवन-घटनाओं का वर्णन है। मेघ कुमार के जीवन में कितनी ही ऐसी घटनाएँ वर्णन की गई हैं, जिनके पढ़ने से प्रत्येक व्यक्ति को अत्यन्त लाभ हो सकता है। किन्तु अनुत्तरौपपातिकसूत्र में केवल सम्यक्चारित्र पालन करने का फल बताया गया है। अतः मेघकुमार के चरित्र में विशेषता दिखाने के लिए उसका चरित्र नवें अङ्ग में न देकर छठे ही अङ्ग में दे दिया गया है।
२-१० अध्ययन मयाली आदि कुमार
६ – एवं सेसाणं वि नवण्हं भाणियव्वं । नवरं सत्त धारिणिसुआ। वेहल्लवेहायसा चेल्लणाए। अभओ नन्दाए।
आइल्लाणं पंचण्हं सोलस वासाइं सामण्णपरियाओ। तिण्हं बारस-बारस वासाइं। दोण्हं पंच वासाइं। आइल्लाणं पंचण्हं आणुपुव्वीए उववायो विजए वेजयंते जयंते अपराजिए सव्वट्ठसिद्धे। दीहदंते सव्वट्ठसिद्धे। उक्कमेणं सेसा। अभओ विजए। सेसं जहा पढमे। अभयस्स नाणत्तं, रायगिहे नयरे, सेणिए राया, नंदा देवी, सेसं तहेव। "एवं खलु जंबू ! समणेणंजाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते।"
शेष नौ अध्ययनों का वर्णन भी इसी प्रकार का है। विशेषता इतनी है कि धारिणी रानी के सात पुत्र हैं। वेहल्ल और वेहायस चेलना के पुत्र हैं । अभय नन्दा का पुत्र है।
आदि के पाँच कुमारों का श्रमण-पर्याय सोलह-सोलह वर्ष का है, तीन का श्रमण-पर्याय बारह वर्ष का है, तथा दो का श्रमण-पर्याय पाँच वर्ष का है।
आदि के पाँच अनगारों का उपपात-जन्म अनुक्रम से विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध विमान में हुआ है।
१.
देखिए सू. १ पृ. १.