Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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दूसरे शब्दों में यों कह सकते हैं कि ऐसे मानवों की दशा यानी अवस्था का वर्णन होने से भी इसे अनुत्तरौपपातिकदशा कहा है। अनुत्तर विमानवासी देवों की एक विशेषता यह है कि वे परीतसंसारी होते हैं। वहां से च्युत होकर एक या दो बार मानव-रूप .. में जन्म लेकर निर्वाण प्राप्त करते हैं।
प्राचीन आगम व आगमेतर ग्रन्थों में प्रस्तुत आगम के सम्बन्ध में जो उल्लेख सम्प्राप्त होते हैं, उनके अनुसार वर्तमान में उपलब्ध अनुत्तरौपपातिकदशा में न वर्णन है और न वे चरित्र ही हैं। यह परिवर्तन कब हुआ, यह अन्वेषनीय है। नवांगी टीकाकार आचार्य अभयदेव ने इसे वाचनान्तर कहा है। मैंने अपने "जैन आगम साहित्य मनन और मीमांसा" ग्रन्थ में इस सम्बन्ध में विस्तार से विवेचन किया है, अतः विशेष जिज्ञासु उसे देखें। वर्तमान में प्रस्तुत आगम तीन वर्गों में विभक्त है, जिनमें क्रमशः दस, तेरह और दस अध्ययन हैं। इस प्रकार तेतीस अध्ययनों में तेतीस महान् आत्माओं का बहुत ही संक्षेप में वर्णन है। जो घटनाएं और आख्यान इसमें आये हैं, वे पल्लवित नहीं हैं, केवल संकेतमात्र हैं। प्रथम वर्ग में जालिकुमार का
और तृतीय वर्ग में धन्यकुमार का चरित्र ही कुछ विस्तार से आया है। शेष चरित्रों में तो केवल सूचन ही है। पर इस आगम में जो भी पात्र आये हैं उनका ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है,जो इतिहास के अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं।
प्रस्तुत आगम में सम्राट् श्रेणिक के जालि, मयालि, उपजालि, पुरुषसेन, वारिसेन, दीर्घदन्त, लष्टदन्त, विहल्ल, वेहायस, अभयकुमार, दीर्घसेन, महासेन, लष्टदन्त, गूढदन्त, शुद्धदन्त, हल्ल, दुम, द्रुमसेन, महाद्रुमसेन, सिंह, सिंहसेन, महासिंहसेन, पुण्यसेन, इन तेवीस राजकुमारों के साधनामय जीवन का वर्णन है।
सम्राट् श्रेणिक मगध साम्राज्य का अधिपति था। जैन, बौद्ध और वैदिक, इन तीनों परम्पराओं में श्रेणिक के सम्बन्ध में पर्याप्त चर्चाएं प्राप्त होती हैं। भागवत महापुराण के अनुसार वह शिशुनागवंशीय कुल में उत्पन्न हुआ था। महाकवि अश्वघोष ने उसका कुल हर्यङ्ग लिखा है। " आचार्य हरिभद्र ने उनका कुल याहिक माना है। १२ रायचौधरी का मन्तव्य है १३ कि बौद्धसाहित्य में जो हर्यङ्ग कुल का उल्लेख है, वह नागवंश का ही द्योतक है। कोविल्ल ने हर्यङ्ग का अर्थ सिंह किया है। पर उसका अर्थ नाग भी है। प्रोफेसर भाण्डारकर ने नाग दशक में बिम्बिसार की भी गणना की है और उन सभी राजाओं का वंश भी नागवंश माना है। बौद्ध-साहित्य में इस कुल का नाम शिशुनागवंश लिखा है। जैन ग्रन्थों में वर्णित वाहिक कुल भी नागवंश ही है। वाहिकजनपद नाग जाति का मुख्य केन्द्र रहा है। उसका कार्य-क्षेत्र प्रमुख रूप से तक्षशिला था, जो वाहिक जनपद में था। इसलिये श्रेणिक को शिशुनागवंशीय मानना असंगत नहीं है।
७. (क) नन्दीसूत्र ८९
(ख) स्थानाङ्ग १०/११४ (ग) समवायांग प्रकीर्णक समवाय ९७ (क) तत्त्वार्थराजवार्तिक १/२०, पृ.७३ (ख) कषायपाहुड भाग १, पृ. १३० (ग) अंगपण्णत्ती ५५ (घ) षट्खण्डागम १/१/२ तदेवमिहापि वाचनान्तरापेक्षयाऽध्ययनविभागः उक्तो, न पुनरुपलभ्यमानवाचनापेक्षयेति। भागवतपुराण, द्वि. ख. पृ. ९०३
जातस्य हयंगकुले विशाले-बुद्धचरित्र, सर्ग ११, श्लोक २ १२. आवश्यक हरिभद्रीया वृत्ति पत्र ६७७ १३. स्टडीज इन इण्डिया एन्टिक्वीटीज, पृ. २१६ १४. महावंश गाथा २७-३२
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- -स्थानाङ्गवृत्ति पत्र ४८३