Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अभय का रूप अत्यधिक सुन्दर था। वे साम, दाम, दण्ड, भेद, प्रदान, व्यापार नीति में निष्णात थे। ईहा, अपोह, मार्गणा, गवेषणा और अर्थशास्त्र में कुशल थे। चारों प्रकार की बुद्धियों के धनी थे । वे श्रेणिक सम्राट् के प्रत्येक कार्य के लिए सच्चे परामर्शक थे। वे राज्यधुरा को धारण करने वाले थे। वे राज्य (शासन), राष्ट्र (देश), कोष, कोठार (अन्नभण्डार), सेना, वाहन, नगर और अन्तःपुर की अच्छी तरह देखभाल करते थे । ५६
अभयकुमार राजा श्रेणिक के मनोनीत मन्त्री थे। ५७ वे जटिल से जटिल समस्याओं को अपनी कुशाग्र बुद्धि से एक क्षण में सुलझा देते थे। उन्होंने मेघकुमार की माता धारिणी ५८ और कुणिक की माता चेलना ५९ का दोहद अपनी कुशाग्र बुद्धि से सम्पन्न किया था। अपनी लघुमाता चेलणा और श्रेणिक का विवाह सम्बन्ध भी सानन्द सम्पन्न कराया था। उनकी बुद्धि के चमत्कार की अनेक घटनाएं जैन साहित्य में अंकित हैं। उज्जयिनी के राजा चण्डप्रद्योत के विकट राजनैतिक संकट से श्रेणिक को मुक्त किया था । ६०
श्रमणधर्म को ग्रहण करना अत्यधिक कठिन है, यह अभयकुमार अच्छी तरह से जानते थे। एक बार एक द्रुमक ( लकड़हारे ने गणधर सुधर्मा के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। लोगों ने उसका परिहास किया। अभयकुमार को ज्ञात होने पर उन्होंने सार्वजनिक स्थान पर तीन एक-एक करोड़ स्वर्णमुद्राओं का अम्बार लगाया और यह उद्घोषणा करवायी कि ये तीनकोटि स्वर्णमुद्राएं वह व्यक्ति ले सकता है जो जीवन भर के लिये स्त्री, अग्नि और सचित्त पानी का परित्याग करे। स्वर्ण मुद्राओं को निहार कर सभी का मन ललचाया, किन्तु शर्त को सुनकर कोई भी आगे नहीं बढ़ सका। अभयकुमार ने उन सभी आलोचकों के सामने कहा- द्रुमक मुनि कितना महान् है, जिसने जीवन भर के लिये स्त्री, अग्नि और सचित्त पानी का परित्याग किया है । आप उस का उपहास करते हैं। सभी द्रुमक मुनि के महान् त्याग से प्रभावित हुये और उन्हें श्रमण धर्म का महत्त्व ज्ञात हुआ । ६१
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सूत्रकृतांग- नियुक्ति ६२ तथा त्रिषष्ठिशलाका-पुरुषचरित्र ३ के अनुसार अभयकुमार ने आर्द्रकुमार को धर्मोपकरण उपहार के रूप में प्रेषित किये थे, जिससे वह प्रतिबुद्ध होकर श्रमण बना था । अभयकुमार के संसर्ग में आकर ही राजगृह का क्रूर कसाई काल शौकरिक का पुत्र सुलसकुमार भगवान् महावीर का परमभक्त बना था । ६४ अभयकुमार की धार्मिक भावना के अनेक उदाहरण जैन साहित्य में उट्टङ्कित हैं। कथाकार कहते हैं - एक बार अभय ने भगवान् महावीर के समक्ष जिज्ञासा प्रस्तुत की कि अन्तिम मोक्षगामी राजा कौन होगा ? भगवान् ने कहा - वीतभय का राजा उदायन जो मेरे निकट संयम स्वीकार कर चुका है। भगवान् की यह बात सुनकर अभय मन ही मन सोचने लगा - -यदि मैं राजा बन गया तो मोक्ष नहीं जा सकूंगा । अतः कुमारावस्था में ही दीक्षा ग्रहण कर लूं। उसने सम्राट् श्रेणिक से अनुमति प्रदान करने के हेतु नम्र निवेदन किया । श्रेणिक ने कहा - - अभी तुम्हारी उम्र दीक्षा लेने की नहीं है। दीक्षा लेने की उम्र मेरी है। तुम राजा बनकर आनन्द का
५६. ज्ञाताधर्मकथा १/१
५७. भरतेश्वर बाहुबली, वृत्ति पत्र ३८
५८. ज्ञाताधर्मकथा १/१
५९. निरयावलिया १
६०. (क) आवश्यकचूर्णि, उत्तरार्ध, पत्र १५९, १६३
(ख) त्रिषष्ठि १० -११-१२४ से २९३
धर्मरत्नप्रकरण - अभयकुमार कथा १/३०
६१.
६२. सूत्रकृतांगनिर्युक्ति टीका सहित १/६/१३६
६३. त्रिषष्ठि १०/७/१७७-१७९, भारतीय इतिहास : एक दृष्टि, पृष्ठ ६७
६४. योगशास्त्र- स्वोपज्ञवृत्ति - १/३०, पृष्ठ ९१ से ९५
आचार्य हेमचन्द्र
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