Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अभय राजकुमार होने पर भी रथविद्या में निपुण था। ° एक बार उस ने प्रकृष्ट प्रतिभा से सीमाविवाद के जटिल प्रश्न को सुलझाया था, जिससे प्रसन्न होकर बिम्बिसार ने एक अत्यन्त सुन्दरी नर्तकी उसे उपहार के रूप में प्रदान की।
मज्झिमनिकाय ७२ के अभयकुमारसुत्त में एक प्रसंग है-एक बार तथागत बुद्ध राजगृही के वेणुवन कलन्दक निवास में विचरण कर रहे थे। उस समय राजकुमार अभय निगण्ठ नायपुत्त के पास पहुंचा। निगण्ठ नायपुत्त ने अभय से कहा'राजकुमार ! श्रमण गौतम के साथ तुम शास्त्रार्थ करो तो तुम्हारी कीर्ति-कौमुदी दिदिगन्त में फैल जायेगी और जनता में यह चर्चा होगी कि अभय ने इतने महर्द्धिक श्रमण गौतम के साथ शास्त्रार्थ किया है।' अभय ने पूछा-'भन्ते ! मैं शास्त्रार्थ का प्रारम्भ कैसे करूँ?'
निगण्ठ नायपुत्त ने कहा-'तुम बुद्ध से पूछना कि क्या तथागत ऐसे वचन बोल सकते हैं जो दूसरों को अप्रिय हों? यदि वे स्वीकार करें तो पूछना कि फिर पृथग्-जन (संसारी जीव) और तथागत में क्या अन्तर है ? यदि वे नकारात्मक उत्तर दें तो पूछना कि आपने देवदत्त के दुर्गतिगामी, नैरयिक, कल्पभर-नरकवासी, अचिकित्सक की भविष्यवाणी क्यों की? वह
आप की प्रस्तुत भविष्यवाणी से कुपित हुआ है। इस तरह दोनों ओर से प्रश्न पूछने पर श्रमण गौतम न उगल सकेगा और न निगल सकेगा। जैसे किसी पुरुष के गले में लोहे की वंशी फंस जाये तो वह न उगल सकता है और न निगल सकता है, यही स्थिति बुद्ध की होगी।'
अभय राजकुमार निगण्ठ नायपुत्त को अभिवादन कर बुद्ध के पास पहुँचा। अभिवादन कर एक ओर बैठ गया, पर शास्त्रार्थ का समय नहीं था। अतः अभय ने सोचा-कल तथागत बुद्ध को घर पर बुलवाकर ही शास्त्रार्थ करूंगा ! उसने बुद्ध को भोजन का निमन्त्रण दिया और अपने राजप्रासाद में चला आया। दूसरे दिन मध्याह्न में चीवर पहन कर और पात्र लेकर बुद्ध अभय के राजप्रासाद में पहुँचे। बुद्ध को अपने हाथों से उसने श्रेष्ठ भोजन समर्पित किया। जब बुद्ध पूर्ण रूप से तप्त हो गये तो राजकुमार अभय नीचे आसन पर बैठ गये और उन्होंने वाद प्रारम्भ किया-भन्ते ! क्या तथागत ऐसे वचन बोल सकते हैं जो दूसरों को अप्रिय हों?
बुद्ध-एकान्त रूप से ऐसा नहीं कहा जा सकता। यह सुनते ही अभय राजकुमार बोल उठा- भन्ते ! निगण्ठ नष्ट हो गया।
बुद्ध के पूछने पर उसने स्पष्टीकरण करते हुए कहा- भन्ते ! मैं निगण्ठ नायपुत्त के पास गया था। उन्होंने ही मुझे आप से यह दुधारा प्रश्न पूछने के लिए उत्प्रेरित किया था। उनका यह मत था कि इस प्रकार प्रश्न पूछने पर गौतम न उगल सकेगा और न निगल सकेगा।
अभय राजकुमार की गोद में एक नन्हा-मुन्ना बैठा हुआ क्रीड़ा कर रहा था। उसे लक्ष्य में लेकर बुद्ध ने कहाराजकुमार, तुम्हारे (या धाय के) प्रमाद से यह शिशु कदाचित् मुंह में काष्ठ का टुकड़ा या ढेला डाल ले तो तुम क्या करोगे?
मैं उसे निकालूँगा भन्ते ! यदि वह सीधी तरह से निकालने नहीं देगा तो बायें हाथ से उसका सिर पकड़ कर दाहिने हाथ से अंगुली टेढ़ी करके रक्त सहित भी निकाल दूंगा ! क्योंकि उस पर मेरा स्नेह है।
बुद्ध-राजकुमार ! तथागत अतथ्य, अनर्थयुक्त और अप्रिय वचन नहीं बोलते। तथ्य सहित होने पर भी यदि अनर्थ करने वाला वचन हो तो उसे भी नहीं बोलते। जो वचन तथ्ययुक्त सार्थक होता है, फिर भले ही प्रिय हो या अप्रिय, कालज्ञ
७०. मज्झिमनिकाय अभयराजकुमारसुत्त ७१. धम्मपद अट्ठकथा १३-४ ७२. मज्झिमनिकाय अभयकुमारसुत्त प्रकरण-७६
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