Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 42
________________ प्रथम वर्ग जाली कुमार - - एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे, रिद्धत्थिमियसमिद्धे । गुणसिलए चेइए। सेणिए राया, धारिणी देवी । सीहो सुमिणे । जाली कुमारो । जहा मेहो अट्ठट्ठओ दाओ जाव [ "अट्ठ हिरण्णकोडीओ, अट्ठ सुवण्णकोडीओ, गाहानुसारेण भाणियव्वं जाव पेसणकारियाओ, अन्नं च विपुलं धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय संख-सिलप्पवाल-रत्तरयण-संतसार-सावतेज्जं अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसाओ पकामं दाउं पकामं भोत्तुं पकामं परिभाउएं। तणं से जालीकुमारे एगमेगाए भारियाए एगमेगं हिरण्णकोडिं दलयति, एगमेगं सुवन्नकोडिं दलयति जाव एगमेगं पेसणकारिं दलयति, अन्नं च विपुलं धणकगण जाव परिभाएउं दलयति ] । ३ से जाली कुमारे उप्पिं पासाय जाव [ "वरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं वरतरुणि-संपउत्तेहिं बत्तीसइबद्धएहिं नाडएहिं उवगिज्जमाणे उवगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे सह-फरिस-रसरूव-गंधविउले माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरति " ] । "जम्बू !" इस प्रकार संबोधित कर कहा - -उस काल और उस समय में राजगृह नाम का नगर था। वह ऋद्ध, स्तिमित (स्थिर) और समृद्ध था । वहाँ गुणशीलक चैत्य था । वहाँ का राजा श्रेणिक था और उसकी धारिणी नाम की रानी थी। धारिणी रानी ने स्वप्न में सिंह को देखा। कुछ काल के पश्चात् रानी ने मेघ कुमार के समान जाली कुमार को जन्म दिया । जाली कुमार का मेघ कुमार के समान आठ कन्याओं के साथ विवाह हुआ और आठ-आठ वस्तुओं का दहेज दिया; यावत् आठ करोड़ हिरण्य (चांदी), आठ करोड़ सुवर्ण, आदि गाथाओं के अनुसार समझ लेना चाहिए' यावत् आठ-आठ प्रेक्षणकारिणी (नाटक करने वाली) अथवा पेषणकारिणी (पीसने वाली) तथा और भी विपुल धन कनक रत्न मणि मोती शंख मूंगा रक्तरत्न (लाल) आदि उत्तम सारभूत द्रव्य दिया। जो सात पीढ़ी तक दान देने के लिए, उपभोग करने के लिए और बँटवारा करने के लिए पर्याप्त था । तत्पश्चात् उस जाली कुमार ने प्रत्येक पत्नी को एक-एक करोड़ हिरण्य दिया, एक-एक करोड़ सुवर्ण दिया यावत् एक-एक प्रेक्षणकारिणी या पेषणकारिणी दी । इसके अतिरिक्त अन्य विपुल धन कनक आदि दिया, जो यावत् दान देने, भोगोपभोग करने और बँटवारा करने के लिए सात पीढ़ियों तक पर्याप्त था । तत्पश्चात् जाली कुमार श्रेष्ठ प्रासाद के ऊपर रहा हुआ, मानो मृदंगों के मुख फूट रहे हों, इस प्रकार उत्तम स्त्रियों द्वारा किये हुए बत्तीसबद्ध नाटकों द्वारा गायन किया जाता हुआ तथा क्रीड़ा करता हुआ मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध की विपुलता वाले मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों को भोगता हुआ रहने लगा । ४ -सामी समोसढे । सेणिओ निग्गओ। जहा मेहो तहा जाली वि निग्गओ। तहेव निक्खंतो जहा हो । एक्कारस अंगाई अहिज्जह। गुणं तवोकम् जहा खंदगस्स । एवं जा चेव खंदगस्स वत्तव्वया, सा चैव चिंतणा, आपुच्छणा । थेरेहिं सद्धिं विडलं तहेव दुरूहइ । नवरं सोलस वासाई सामण्ण-परियागं पाउणित्ता कालमासे कालं देखिए इसी समिति द्वारा प्रकाशित अन्तगड पृ. २७ तथा प्रस्तुत सूत्र पृ. १९. १.

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