Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 41
________________ ६ दीहदंते य लट्ठदंते य वेहल्ले वेहायसे अभए इ य कुमारे ॥ जड़ णं भंते! समणेणं जाव' संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं जाव' संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? अनन्तर सुधर्मा अनगार जम्बू अनगार से इस प्रकार कहने लगे जम्बू ! श्रमण यावत् निर्वाणसंप्राप्त भगवान् महावीर ने नवमे अंग. अनुत्तरौपपातिकदशा के तीन वर्ग कहे हैं। भंते ! यदि श्रमण यावत् निर्वाणसंप्राप्त भगवान् महावीर ने नवमे अंग अनुत्तरौपपातिकदशा के तीन वर्ग कहे हैं तो भन्ते ! अनुत्तरौपपातिकदशा के प्रथम वर्ग श्रमण यावत् निर्वाणसंप्राप्त महावीर भगवान् ने कितने अध्ययन कहे हैं ? अनुत्तरौपपातिकदशा — जम्बू ! श्रमण यावत् निर्वाणसंप्राप्त भगवान् महावीर ने अनुत्तरौपपातिकदशा के प्रथम वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं, जो इस प्रकार हैं. - १. जालि कुमार, २. मयालि कुमार, ३. उपजालि कुमार, ४. पुरुषसेन कुमार, ५. वारिषेण कुमार, ६. दीर्घदन्त कुमार, ७. लष्टदन्त (लट्ठराष्ट्रदान्त) कुमार, ८. वेहल्ल कुमार, ९. वेहायस कुमार, १०. अभय कुमार । भन्ते ! यदि श्रमण यावत् निर्वाणसंप्राप्त भगवान् महावीर ने प्रथम वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं, तो भन्ते ! श्रमण यावत् निर्वाणसंप्राप्त भगवान् महावीर ने अनुत्तरौपपातिकदशा के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? - विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में विषय अत्यंत संक्षिप्त है। जम्बू स्वामी ने अत्यंत उत्कृष्ट भाव से आर्य सुधर्मा स्वामी के समक्ष अनुत्तरौपपातिकसूत्र के कितने वर्ग प्रतिपादित किये हैं, इस विषय में जिज्ञासा प्रकट की है। आर्य सुधर्मा अनगार ने उक्त सूत्र को तीन वर्ग में प्रतिपादित किया है और प्रथम वर्ग के दस अध्ययनों के नाम गिनाये हैं। नाम क्रम से निम्नलिखित हैं १. जालि कुमार, २. मयालि कुमार, ३. उपजालि कुमार, ४. पुरुषसेन कुमार, ५. वारिषेण कुमार, ६ . दीर्घदन्त कुमार, ७. लष्टदन्त कुमार, ८. वेहल्ल कुमार, ९. वेहायस कुमार और १०. अभय कुमार । प्रस्तुत सूत्र की सार्थकता या सप्रयोजनता किस प्रकार सिद्ध होती है, इस विषय में दृष्टिपात करें तो प्रतीत होता है कि जो भव्य जीव अपने वर्तमान जन्म में कर्मों का सम्पूर्ण रूप से क्षय करने में असमर्थ हों, वे इस जन्म के अनन्तर पांच अनुत्तरविमानों के परम साता - वेदनीय-जनित सुखों का अनुभव करके आगामी भव में निर्वाण-पद प्राप्त कर सकते हैं । १. २. -- इन सूत्रों से यह भी फलित होता है कि विनयपूर्वक अध्ययन किया हुआ ज्ञान ही सफल हो सकता है। जो शिष्य विनयपूर्वक गुरु से ज्ञान प्राप्त करना चाहता है उसको गुरु सम्यक् ज्ञान से परिपूर्ण कर देते हैं । तथा जिसका आत्मा ज्ञान से परिपूर्ण होता है, वह सहज ही अन्य आत्माओं का उद्धार करने में समर्थ हो सकता है । अत: इस सूत्र सिद्ध है कि गुरुभक्ति से ही श्रुत ज्ञान की प्राप्ति होती है। देखिए सू. १

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134