Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 38
________________ अहँ पढमो वग्गो प्रथम अध्ययन जाली उत्क्षेप १- तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। अजसुहम्मस्स समोसरणं। परिसा निग्गया जाव [धम्मं सोच्चा, निसम्म जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया।] जम्बू पजुवासइ, जाव [जम्बू णामं अणगारे कासवगोत्तेणं सत्तुस्सेहे, समचउरंस-संठाण-संठिए, वजरिसह-नारायसंघयणे कणग-पुलगनिघस-पम्हगोरे, उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले, घोरे, घोरगुणे, घोरतवस्सी, घोरबंभचेरवासी, उच्छूढसरीरे संखित्त-विउल-तेउलेसे, चोद्दसपुव्वी, चउणाणोवगए, सव्वक्खर-सन्निवाई अजसुहम्मस्स थेरस्स अदूरसामन्ते उ8जाणू अहोसिरे झाण-कोट्ठोवगए, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं अज-जम्बू णामं अणगारे जायसड्डे जायसंसए जायकोउहल्ले, संजायसड्डे संजायसंसए संजायकोउहल्ले, उप्पन्नसड्डे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोउहल्ले, समुष्पन्नसड्डे समुप्पन्न-संसए समुप्पन्नकोउहल्ले उठाए उठेति, उठेत्ता जेणामेव अजसुहम्मे थेरे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अजसुहम्मे थेरे तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेति, करित्ता वंदति, नमसति, वंदित्ता, नमंसित्ता अजसुहम्मस्स थेरस्स नच्चासन्ने नाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विणएणं] पज्जुवासमाणे एवं वयासी___जइ णं भंते ! समणेणं जाव[भगवया महावीरेणं आइगरेणं, तित्थयरेणं, सयंसंबुद्धेणं, पुरिसुत्तमेणं, पुरिससीहेणं, पुरिसवरपुंडरीएणं, पुरिसवरगंधहत्थिणा, लोगमुत्तमेणं, लोगनाहेणं, लोगहिएणं, लोगपईवेणं, लोगपजोयगरेणं, अभयदएणं, सरणदएणं, चक्खुदएणं, मग्गदएणं, बोहिदएणं, धम्मदएणं, धम्मदेसएणं, धम्मनायगेणं धम्मसारहिणा, धम्मवरचाउरंत-चक्कवट्टिणा, अप्पडिहयवर-नाण-दसण-धरेणं, वियदृछउमेणं, जिणेणं, जावएणं, तिनेणं, तारएणं, बुद्धेणं, बोहएणं, मुत्तेणं, मोअगेणं, सव्वन्नेणं, सव्वदरिसणेणं सिवमयलमरुअमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावित्तिअंसासयं ठाणं] संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगढदसाणं अयमढे पण्णत्ते, नवमस्स णं भंते! अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं जाव' संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते? उस काल और उस समय में राजगृह नामक एक नगर था। आर्य सुधर्मा का वहां आगमन हुआ। धर्मदेशना सुनने के लिए परिषद् आई और धर्मदेशना सुनकर [हृदय में धारण कर जिस दिशा (ओर) से आई थी, उसी दिशा में] लौट गई। आर्य जम्बू अनगार आर्य सुधर्मास्वामी के पास संयम और तप से आत्मा को भावित १. २. ज्ञाता. श्रुत. १, अ.१ में संपत्तेण के स्थान पर 'उवगएणं' शब्द दिया गया है। पूर्ववत् सू. १.

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