Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तथागत उसे बोलते हैं। क्योंकि उनकी प्राणियों पर दया है।
अभय राजकुमार
- भन्ते ! क्या आप पहले से ही मन में यह विचार कर रखते हैं कि इस प्रकार का प्रश्न करने पर
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मैं ऐसा उत्तर दूंगा ?
बुद्ध - तुम रथ - विद्या के निष्णात हो । रथ का यह कौन सा अंग-प्रत्यंग है, यदि कोई तुम से यह पूछे तो क्या तुम
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उसका पहले से ही उत्तर सोच-समझ कर रखते हो ? या समय पर ही तुम्हें भासित हो जाता है ?
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- भन्ते ! मैं रथ का विशेषज्ञ हूँ। इसलिए मुझे उसी समय ज्ञात हो जाता है।
अभयकुमार
बुद्ध — राजकुमार ! तथागत को भी उसी क्षण भासित हो जाता है, क्योंकि उनका मन अच्छी तरह से सधा हुआ है।
अभय - आश्चर्य भन्ते ! आपने अनेक पर्याय से धर्म को प्रकाशित किया है। मैं आपकी शरण में आता हूँ। धर्म और भिक्षु संघ मुझे अंजलिबद्ध शरणागत स्वीकार करें ।
संयुक्त निकाय में भी अभयकुमार का बुद्ध से साक्षात्कार होने का उल्लेख है। वह बुद्ध से पूर्ण काश्यप की मान्यता से सम्बन्धित एक प्रश्न करता है। ७३ धम्मपद अट्ठकथा के अनुसार अभयकुमार को स्रोतापत्तिफल ७४ उस समय प्राप्त होता है जब वह नर्तकी की मृत्यु से खिन्न होकर बुद्ध के पास गया और बुद्ध ने धर्मोपदेश दिया। ७५ थेरगाथा अट्ठकथा के अनुसार अभय को स्त्रोतापत्तिफल उस समय प्राप्त हुआ जब तथागत ने तालच्छिगुलुपमसुत्त का उपदेश दिया था। ७६ वह श्रेणिक बिम्बिसार की मृत्यु से अत्यन्त उदास होकर बुद्ध के पास पहुँचा, प्रव्रज्या ग्रहण की और अर्हत् पद प्राप्त किया। भिक्षु बनने के पश्चात् उसने अपनी माता पद्मावती को भी उद्बोधन दिया और उसने भिक्षुणी बनकर अर्हत् पद प्राप्त किया। ७८
जैन और बौद्ध साक्ष्यों के आलोक में यह स्पष्ट परिज्ञात होता है कि अभयकुमार और अभयराजकुमार ये दोनों पृथक्पृथक् व्यक्ति रहे होंगे क्योंकि जैन दृष्टि से उसकी माता वणिक् कन्या है, वह राजा श्रेणिक का प्रधानमन्त्री है और महावीर के पास दीक्षा ग्रहण करता है जबकि बौद्ध दृष्टि से वह एक गणिका का पुत्र है, सफल रथिक है, निगण्ठ धर्म का परित्याग कर बौद्ध धर्म को स्वीकार करता है और अन्त में बुद्ध के पास भिक्षु बनता है। यदि अभय एक ही व्यक्ति होता तो महावीर और बुद्ध इन दोनों के पास वह किस प्रकार दीक्षा ले सकता था ? यह सम्भव है कि राजा श्रेणिक के अनेक पुत्र थे, उनमें एक का नाम अभय रहा हो और दूसरे का नाम अभयराजकुमार रहा हो। ७९
जैन दीक्षा का उल्लेख प्रस्तुत आगम " में है, जिसका रचनाकाल पण्डितप्रवर दलसुख मालवणिया प्रभृति विज्ञों ने
७३. संयुक्तनिकाय, अभयसुत्त ४४ / ६ / ६
७४. स्रोतापत्ति – धारा में आ जाना। निर्वाण के मार्ग में आरूढ हो जाना, जहां से गिरने की कोई संभावना न हो । योगसाधना करने वाला भिक्षु जब सत्कायदृष्टि, विचिकित्सा और शीलव्रत परामर्शक, इन तीन बंधनों को तोड़ देता है तब वह स्रोतापन कहा जाता है । स्रोतापन्न व्यक्ति अधिक से अधिक सात बार जन्म लेता है, फिर अवश्य ही निर्वाण प्राप्त करता है।
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७५. धम्मपद - अट्ठकथा १३/४
७६. थेरगाथा- अट्ठकथा १/५८
७७. (क) थेरगाथा - २६
(ख) थेरगाथा - अट्ठकथा खण्ड १, पृ. ८३-८४
७८. थेरगाथा - अट्ठकथा ३१-३२
७९.
(क) आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन, पृ. ३५९
(ख) भगवान् महावीर : एक अनुशीलन
८०. अनुत्तरौपपातिक - १ / १०
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