Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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उपभोग करो । अभयकुमार के अत्यधिक आग्रह पर श्रेणिक ने कहा-जिस दिन रुष्ट होकर मैं तुम्हें कह दूं-दूर हट जा, मुझे अपना मुंह न दिखा; उसी दिन तू श्रमण बन जाना।
कुछ समय के पश्चात् भगवान् महावीर राजगृह में पधारे। भगवान् के दर्शन कर महारानी चेलना के साथ राजा लौट रहा था। सरिता के किनारे राजा श्रेणिक ने एक मुनि को ध्यानस्थ देखा। सर्दी बहुत ही तेज थी। महारानी का हाथ नींद में ओढ़ने के वस्त्र से बाहर रह गया और हाथ ठिठुर गया था। उसकी नींद उचट गई और मुनि का स्मरण आने पर अचानक मुंह से निकल पड़ा-'वे क्या करते होंगे !'रानी के शब्दों ने राजा के मन में अविश्वास पैदा कर दिया। प्रातःकाल वह भगवान के दर्शन को चल दिया। चलते समय अभयकुमार को यह आदेश दिया कि चेलना के महल को जला दो, यहाँ पर दुराचार पनपता है। अभयकुमार ने राजमहल में से रानियों को और बहुमूल्य वस्तुओं को निकाल कर उसमें आग लगा दी। राजा श्रेणिक ने महावीर से प्रश्न किया। महावीर ने कहा-चेलना आदि सभी रानियाँ पूर्ण पतिव्रता और शीलवती हैं। राजा श्रेणिक मन ही मन पश्चात्ताप करने लगा। वह पुनः समवसरण से शीघ्र लौटकर राजभवन की ओर चल दिया। मार्ग में अभयकुमार मिल गया। राजा के पूछने पर अभयकुमार ने महल को जला देने की बात कही। राजा ने कहा-तुमने अपनी बुद्धि से काम नहीं लिया? अभय बोला-राजन् ! राजाज्ञा को भंग करना कितना भयंकर है यह मुझे अच्छी तरह से ज्ञात था।
राजा को अपने अविवेकपूर्ण कृत्य पर क्रोध आ रहा था। वे अपने क्रोध को वश में न रख सके और उनके मुंह से सहसा शब्द निकल पड़े-'यहां से चला जा। भूलकर भी मुझे मुंह न दिखाना।' अभयकुमार तो इन शब्दों की ही प्रतीक्षा कर रहा था। उसने राजा को नमस्कार किया और भगवान् के चरणों में पहुंचकर दीक्षा ग्रहण कर ली।
राजा श्रेणिक महलों में पहुंचा। सभी रानियाँ और बहुमूल्य वस्तुएं सुरक्षित देखकर उसे अपने वचनों के लिए अपार दुःख हुआ। वह भगवान् के पास पहुँचा। पर अभय राजा श्रेणिक के पहुंचने के पूर्व ही दीक्षित हो चुका था। ६५
___अन्तकृद्दशांग सूत्र में अभय की माता नन्दा के भी दीक्षित होकर मोक्ष जाने का उल्लेख है। १६ अभयकुमार मुनि ने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, गुणरत्नतप की आराधना की। उनका शरीर अत्यन्त कृश हो गया। तथापि साधना का अपूर्व तेज उनके मुख पर चमक रहा था। अभयकुमार में प्रबल प्रतिभा थी। कुशाग्र बुद्धि के वे धनी थे। बुद्धि की सार्थकता इसी में है कि आत्म-तत्त्व की विचारणा की जाय। -"बुद्धे फलं तत्त्वविचारणं च" आज भी व्यापारी वर्ग अभय की बुद्धि को स्मरण करता है। नूतन वर्ष के अवसर पर बहीखातों में लिखित रूप से अभय की-सी बुद्धि प्राप्त करने की कामना की जाती है।
बौद्ध साहित्य में अभयकुमार का नाम अभयराजकुमार मिलता है। उसकी माता उज्जयिनी की गणिका पद्मावती थी। जब श्रेणिक बिम्बिसार ने उसके अद्भुत रूप की बात सुमी तो वह उसके प्रति आकृष्ट हो गया। उसने अपने मन की बात राजपुरोहित से कही। पुरोहित ने कुम्पिर नामक यक्ष की आराधना की। वह यक्ष श्रेणिक बिम्बिसार को लेकर उज्जयिनी गया। वहाँ पद्मावती वेश्या के साथ सम्पर्क हुआ। अभयराजकुमार अपनी माता के पास सात वर्ष तक रहा और उसके पश्चात् अपने पिता के पास राजगृह आ गया।"
६५. भरतेश्वरबाहुबली वृत्ति पत्र ३८ से ४० ६६. अन्तकृदशांगसूत्र वर्ग-७ ६७. अनुत्तरौपपातिक सूत्र १/१० ६८. गिल्गिट मेनुस्क्रिप्ट के अभिमतानुसार वह वैशाली की गणिका आम्रपाली से उत्पन्न बिम्बिसार का पुत्र था। (खण्ड ३,
२ पृ. २२) थेरगाथा-अट्ठकथा ६४ में श्रेणिक से उत्पन्न आम्रपाली के पुत्र का नाम मूल पाली साहित्य में "विमल
कोडञ्ज" आता है जो आगे चलकर बौद्ध भिक्षु बना। ६९. थेरीगाथा अट्ठकथा ३१-३२
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