Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 24
________________ माला या कर रहे हैं। उत्तराध्ययन के अनुसार श्रेणिक सम्राट् ने अनाथी मुनि से नाथ और अनाथ के गुरु-गंभीर रहस्य को समझकर जैन धर्म स्वीकार किया था। ४८ सम्राट् श्रेणिक क्षायिक-सम्यक्त्व-धारी थे। उन्होंने तीर्थकर नामकर्म प्रकृति का भी बंध किया था, यद्यपि वे न तो बहुश्रुत थे और न प्रज्ञप्ति जैसे आगमों के वेत्ता ही थे, तथापि सम्यक्त्व के कारण ही वे तीर्थकर जैसे गौरवपूर्ण पद को प्राप्त करेंगे। ४९ बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार श्रेणिक की पाँच सौ रानियाँ थीं। ५. उन्होंने उसे तथागत बुद्ध का भक्त माना है। कितने ही विद्वानों की यह धारणा है कि जीवन के पूर्वार्ध में वह जैन था और उत्तरार्ध में बौद्ध बन गया था, इसलिये जैन ग्रन्थों में उसके नरक जाने का उल्लेख है। पर उन विद्वानों की यह धारणा उचित नहीं है। हम पूर्व ही लिख चुके हैं कि आगामी चौबीसी में वे पद्मनाभ नामक प्रथम तीर्थकर होंगे। ५९ हमारी दृष्टि से यह हो सकता है कि जब राजा प्रसेनजित ने श्रेणिक को निर्वासित किया था, उस समय उन्होंने प्रथम विश्राम नन्दीग्राम में लिया था। वहाँ के प्रमुख ब्राह्मणों ने राजकोप के भय से न उन्हें भोजन दिया और न विश्रान्ति के लिये आवास ही प्रदान किया। विवश होकर नन्दीग्राम के बाहर बौद्ध-विहार में उन्हें रुकना पड़ा और वहाँ के बौद्ध भिक्षुओं ने उन्हें स्नेह प्रदान किया हो, जिससे उनके अन्तर्मानस में बौद्धधर्म के प्रति सहज अनुराग जाग्रत हुआ हो। इसलिये निर्ग्रन्थ (जैनधर्म) का परम उपासक होने पर भी तथागत बुद्ध के प्रति भी उसमें स्नेह रहा हो और उस स्नेह के कारण ही उन्होंने बुद्ध से धार्मिक चर्चाएं भी की हों। उपर्युक्त पंक्तियों में हमने देखा है कि श्रेणिक एक बहुत तेजस्वी शासक था। वह जिनशासन की महान् प्रभावना करने वाला था।देवों के द्वारा की गई परीक्षा में भी वह समुत्तीर्ण हुआ था। ५२ उसका अनूठा कृतित्व जैनधर्म की गौरव-गरिमा में चार चाँद लगाने वाला था। प्रस्तुत आगम में श्रेणिक सम्राट् के राजकुमारों का वर्णन है, उनके जीवन-प्रसंगों के सम्बन्ध में भी यत्र-तत्र चर्चाएं आई हैं। विहल्लकुमार का सम्बन्ध हार हाथी के प्रसंग को लेकर उस युग के महान् संग्राम महाशिला से है किन्तु विस्तारभय से हम उन सभी का उल्लेख न कर अभयकुमार के सम्बन्ध में ही यहाँ कुछ चिन्तन प्रस्तुत कर रहे हैं। अभयकुमार प्रबल प्रतिभा का धनी था। जैन और बौद्ध दोनों ही परम्पराएं उसे अपना अनुयायी मानती हैं। जैन आगम साहित्य के अनुसार वह भगवान् महावीर के पास आहती दीक्षा स्वीकार करता है और त्रिपिटक साहित्य के अनुसार वह बुद्ध के पास प्रव्रजित होता है। जैन साहित्य की दृष्टि से वह श्रेणिक की नन्दा नामक रानी का पुत्र था। ५३ नन्दा वेन्नातटपुर ५४ के श्रेष्ठी धनावह की पुत्री थी। कुमारावस्था में श्रेणिक वहाँ पहुंचे थे और उन्होंने नन्दा के साथ पाणिग्रहण किया था। आठ वर्ष तक अभयकुमार अपनी माँ के साथ ननिहाल में रहे थे और उसके पश्चात् वे राजगृह आ गये। ५५ ४८. उत्तराध्ययन सूत्र, अ. २० ४९. न सेणिओ आसि तया बहुस्सुओ, न यावि पन्नत्तिधरो न वायगो। सो आगमिस्साइ जिणो भविस्सई; समिक्ख पन्नाई वरं खु दंसणं ॥ ५०. विनयपिटक महावग्ग ९/१/१५ ५१. जओ खाइगसम्मदिट्ठी तुमं आगमिस्साए य उस्सप्पिणीए तत्तो उवट्टित्ता पठमनाभनामो पढमतित्थयरो भविस्ससि। - महावीर चरित्र (गुणचन्द्र) ५२. (क) त्रिषष्ठि १०/९. (ख) निरयावलिया टीका पत्र-५-१ ५३. (क) ज्ञाताधर्मकथा १/१ (ख) निरयावलिया-२३ (ग) अनुप्तरोपपातिक १/१ ५४. यह नगर दक्षिण की कृष्णानगरी नदी जहाँ पूर्व के समुद्र से मिलती है वहाँ होना चाहिए, देखिये- भगवान् महावीर : एक अनुशीलन : देवेन्द्रमुनि शास्त्री ५५. भरतेश्वर-बाहुबली, वृत्ति पत्र ३६ [२१]

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