Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 23
________________ अभिमत है कि पिता के द्वारा अठारह श्रेणियों के स्वामी बनाये जाने के कारण वह श्रेणिक बिम्बसार कहलाया । २९ जैन, बौद्ध और वैदिक वाङ्मय में श्रेणी और प्रश्रेणी की यत्र-तत्र चर्चाएं आई हैं। जम्बूद्वीपपण्णत्ति ३० जातक मूगपक्खजातक में श्रेणी की संख्या अठारह मानी है। महावस्तु में ३२ तीस श्रेणियों का उल्लेख है। यजुर्वेद में ३३ त्रेपन का उल्लेख है। किसी-किसी का अभिमत है कि महती सेना होने से या सेनिय गोत्र होने से उसका नाम श्रेणिक पड़ा । ३४ श्रीमद्भागवत पुराण में श्रेणिक के अजातशत्रु ५ विधिसार नाम भी आये हैं। दूसरे स्थलों में विन्ध्यसेन और सुविन्दु नाम के भी उल्लेख हुए हैं। ३७ ३५ आवश्यक हरिभद्रीयावृत्ति ३८ और त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र ९ के अनुसार श्रेणिक के पिता प्रसेनजित थे । दिगम्बर आचार्य हरिषेण ने श्रेणिक के पिता का नाम उपश्रेणिक लिखा है। " आचार्य गुणभद्र ने उत्तरपुराण १ में श्रेणिक के पिता का नाम कुणिक लिखा है जो अन्यान्य आगम और आगमेतर ग्रन्थों से संगत नहीं है। वह श्रेणिक का पिता नहीं किन्तु पुत्र है। ४२ अन्यत्र ग्रन्थों में श्रेणिक के पिता का नाम महापद्म, हेमजित्, क्षेत्रोजा, क्षेत्प्रोजा भी मिलते हैं। XI जैन साहित्य में श्रेणिक की छब्बीस रानियों के नाम उपलब्ध होते हैं। उनके ३५ पुत्रों का भी वर्णन मिलता है। ज्ञातासूत्र ४५ अन्तकृद्दशा निरयावलिका, ४७ आवश्यकचूर्णि, निशीथचूर्णि, त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र, उपदेशमाला दोघट्टी टीका, श्रेणिक चरित्र प्रभृति में उनके अधिकांश पुत्र, पौत्र और महारानियों के भगवान् महावीर के पास प्रव्रज्या लेने के उल्लेख हैं। वे सभी ज्ञान, ध्यान व उत्कृष्ट तप-जप की साधना कर स्वर्गवासी होते हैं। विस्तारभय से हम उन सभी का उल्लेख नहीं २९. स पित्राष्टादशसु श्रेणिष्वग्तारितः अतोऽस्य श्रेयो बिम्बिसार इति ख्यातः (?) ३०. जम्बूद्वीपपण्णत्ति, वक्षस्कार ३, पत्र १९३ ३१. जातक, मूगपक्खजातक, भाग ६ ३२. ३३. (क) महावस्तु भाग ३, (ख) ऋषभदेव : एक परिशीलन, ले. देवेन्द्र मुनि (परिशिष्ट ३, पृ. १५) द्वि.सं. श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय, उदयपुर (राज.) (क) यजुर्वेद का ३० वाँ अध्याय (ख) वैज्ञानिक विकास की भारतीय परम्परा, पृ. २७-३० धम्मपाल- उदान टीका, पृ. १४० ३४. ३५. श्रीमद्भागवत, द्वितीय काण्ड, पृ. ९०३ ३६. श्रीमद्भागवत १२ / १ ३७. भारतवर्ष का इतिहास, पृ. २५२, भगवद्दत्त आवश्यक हरिभद्रीयावृत्ति, पत्र ६७१ ३८. ३९. त्रिषष्ठि १०/६/१ ४०. वृहत्कथाकोष, कथा ५५, श्लो. १-२ ४१. उत्तरपुराण ७४/४/८, पृ. ४७१ ४२. औपपातिकसूत्र ४३. पॉलिटिकल हिस्ट्री ऑफ एन्शिएन्ट इण्डिया, पृ. २०५ ४४. देखिये भगवान् महावीर • एक अनुशीलन, पृ. ४७३- ४७४ देवेन्द्रमुनि शास्त्री ४५. ज्ञातासूत्र १/१ ४६. अन्तकृद्दशा, वर्ग-७, अ-१ से १३ ४७. निरयावलिया - प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रथम वर्ग, विनयपिटक, गिलगित मांस्कृप्ट दूसरा वर्ग [२०]

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