Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 18
________________ द्वितीय वर्ग में १३ अध्ययन हैं, और तृतीय वर्ग में १० अध्ययन हैं। इस प्रकार तीनों वर्गों की अध्ययन संख्या ३३ होती है। प्रत्येक अध्ययन में एक-एक महापुरुष का जीवन वर्णित है। प्रथम वर्ग : प्रथम वर्ग में जालि, मयालि, उपजालि, पुरुषसेन, वारिसेण, दीर्घदन्त, लष्टदन्त, वेहल्ल, वेहायस और अभयकुमार इन दश राजकुमारों का, उनके माता-पिता, नगर, जन्म आदि का तथा वहाँ के राजा, उद्यान आदि का परिचय दिया गया है तथा उक्त दशों राजकुमार भगवान् महावीर के पास संयम स्वीकार करके तथा उत्कृष्ट तप-त्याग की आराधना कर अनुत्तर विमान में देव हए और वहां से चयकर मानव शरीर धारण कर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होंगे। द्वितीय वर्ग: द्वितीय वर्ग में दीर्घसेन, महासेन, लष्टदन्त, गूढदन्त, शुद्धदन्त, हल्ल, द्रुम, द्रुमसेन महागुमसेन, सिंह, सिंहसेन, महासिंहसेन और पुण्यसेन-इन तेरह राजकुमारों के जीवन का वर्णन भी जालिकुमार के जीवन की भाँति ही संक्षेप में किया गया है। इस वर्ग में वर्णित महापुरुषों का जीवन भोगमय तथा तपोमय था और सभी राजकुमार अपनी तप-साधना के द्वारा पाँच अनुत्तर विमानों में गए हैं तथा वहाँ से चयकर मनुष्य जन्म पाकर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होंगे। तृतीय वर्ग : तृतीय वर्ग में धन्यकुमार, सुनक्षत्रकुमार, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र, चन्द्रिक, पृष्टिमातृक, पेढालपुत्र, पोष्टिल्ल तथा वेहल्ल इन दश कुमारों के भोगमय जीवन के पश्चाद्वर्ती तपोमय जीवन का सुन्दर चित्रण किया गया है। उक्त दश कुमारों में धन्यकुमार का वर्णन विस्तारपूर्वक है। अनुत्तरौपपातिकसूत्र का प्रमुख पात्र धन्यकुमार काकन्दी की भद्रा सार्थवाही का पुत्र था। अपरिमित धन-धान्य और सुख-उपभोग के साधनों से सम्पन्न था। धन्यकुमार का लालन-पालन बड़े ऊँचे स्तर पर हुआ था। वह सांसारिक सुखों में लीन था। एक दिन श्रमण भगवान् महावीर के त्याग-वैराग्य संयुक्त दिव्य पावन प्रवचन सुनकर वैराग्य की भावना जागृत हो गई और तदनुसार वह अपने विपुल वैभव को छोड़कर मुनि बन गया। मुनिजीवन प्राप्त करने के पश्चात् जो त्याग और तपोमय जीवन का प्रारम्भ हुआ वह श्रमणसमुदाय में अद्भुत था। तपोमय जीवन का ऐसा अद्भुत और सर्वांगीण वर्णन श्रमण-साहित्य में अन्यत्र उपलब्ध नहीं होता तो इतर साहित्य में उपलब्ध हो ही कैसे सकता है ? अनगार बनते ही धन्य ने जीवन भर के लिए छठ-छठ के तप से पारणा करने की प्रतिज्ञा की। पारणा में आचाम्लव्रत अर्थात् केवल रूक्ष भोजन करते थे। इसमें भी अनेकानेक प्रतिबन्ध उन्होंने स्वेच्छया स्वीकार किए थे। इस प्रकार उत्कृष्ट तप करने से उनका शरीर केवल अस्थिपंजर रह गया था। इस प्रकार अनुत्तरौपपातिकसूत्र में भगवान् महावीरकालीन उग्र तपस्वियों में महादुष्करकारक और महानिर्जराकारक धन्य अनगार ही थे। स्वयं भगवान् महावीर ने सम्राट् श्रेणिक को बताया था कि चौदह हजार श्रमणों में धन्य अनगार उत्कृष्ट तपोमूर्ति हैं। इस प्रकार धन्य अनगार नव मास की स्वल्पावधि में उत्कृष्ट साधना कर सर्वार्थसिद्ध विमान में देव रूप से उत्पन्न हुए। वहाँ से च्यवनकर वे मनुष्यजन्म पाकर तप:साधना के द्वारा सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होंगे। . काकन्दी की भद्रा सार्थवाही का द्वितीय पुत्र सुनक्षत्रकुमार था। उसका वर्णन भी धन्यकुमार की तरह ही समझना चाहिए। शेष आठ कुमारों का वर्णन प्रायः भोग-विलास में तथा तप-त्याग में सुनक्षत्र के समान ही समझना चाहिए। __इस प्रकार प्रस्तुत अनुत्तरौपपातिकसूत्र में तेतीस महापुरुषों का परिचय दिया गया है। यह वर्णन सम्पूर्ण प्रकार से प्राचीन समय की परिस्थिति का द्योतक है। अतएव ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। [१५]

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