Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उपासकदशागसूत्रे ___ 'स्यादस्त्येव सर्व'-मिति केवलं विधि प्रकल्प्य प्रथमः (१)। 'स्यान्नास्त्येव सर्व-मिति केवलं निषेधं प्रकल्प्य द्वितीयः (२) । 'स्यादस्त्येव स्यान्नास्त्येवे' ति क्रमिकौ विधिनिषेधौ प्रकल्प्य तृतीयः (२) । 'स्यादवक्तत्यमेवे'-ति यौगपद्येन विधि-निषेधौ प्रकल्प्य चतुर्थः (४)। स्यादस्त्येवे '-ति केवलं विधि
(१) 'स्यादस्येव सर्वम्' अर्थात् प्रत्येक पदार्थ, स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्वभाव की अपेक्षासे है। इस भंगमें सिर्फ विधिकी कल्पना की गई है।
(२) 'स्यानास्त्येव सर्वम्'-अर्थात् प्रत्येक पदार्थ, पर द्रव्य, पर क्षेत्र, पर काल और पर भाव की अपेक्षा नहीं है । इस भंगमें सिर्फ निषेधकी कल्पना है। . (३) 'स्यादस्त्येव स्यान्नास्त्येव सर्वम्'--अर्थात् प्रत्येक पदार्थ, स्वद्रव्यादिचतुष्टयकी अपेक्षा है, परद्रव्यादिचतुष्टयकी अपेक्षा नहीं है। इस भंगमें विधि और निषेध दोनोंकी क्रमशः कल्पना की गई है।
(४) 'स्यादवक्तव्यमेव सर्वम्'--अर्थात् प्रत्येक पदार्थ किसी अपेक्षा अवक्तव्य (वचन के अगोचर) है। यहां विधि और निषेधकी युगपत् (एकही साथ) कल्पना है। एक समयमें एक ही धर्मका कथन हो सकता है, अनेक धर्मों का नहीं हो सकता । यहां एक ही साथ दो धर्मों की विवक्षा है, और दोनों का युगपत् कथन नहीं हो सकता, अतः इस अपेक्षा से पदार्थ अवक्तव्य है ।
(२) स्यानास्त्येव सर्वम्-अर्थात् प्रत्ये: यहाथ ५२व्य, ५२क्षेत्र, ५२४ અને પરભાવની અપેક્ષાઓ નથી. આ ભાંગામાં માત્ર નિષેધની કલ્પના છે.
(3) स्यादस्त्येव स्यानास्त्येव सर्वम् अर्थात् प्रत्ये: पहाण, स्वव्याચતુષ્ટયની અપેક્ષાએ છે, પ૨દ્રવ્યાદિ-ચતુષ્ટયની અપેક્ષાઓ નથી. આ ભાંગામાં વિધિ અને નિષેધ એ બેઉની ક્રમશઃ કલ્પના કરી છે.
(४) स्यादवकत्यमेव सर्वम्-अर्थात् प्रत्ये४ पहा अपेक्षा अवतव्य ( વચનને અગેચર) છે. અહીં વિધિ અને નિષેધની એકી સાથે કલ્પના કરી છે, એક સમયે એક જ ધર્મનું કથન થઈ શકે છે, અનેક ધર્મોનું નથી થઈ શકતું. અહીં એકી સાથે બે ધર્મોની વિવક્ષા છે, અને બેઉનુ એકી સાથે કથન નથી થઈ શકતું, માટે એ અપેક્ષાએ પદાર્થ અવકતવ્ય છે.
ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર