Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उपासकदशासूत्रे प्रतिक्रान्तःसमाधिप्राप्तः कालमासे कालं कृत्वा सौधर्मे कल्पेऽरुणावतंसके विमाने देवतयोपपन्नः । चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः । महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति ॥२६॥ निक्षेपः॥
सप्तमस्याङ्गस्योपासकदशानामष्टममध्ययन
समाप्तम् ॥८॥
व्याख्या सुस्पष्टा ॥ २६२--२६८ ॥ इतिश्री-विश्वविख्यात-जगहल्लम-प्रसिद्धवाचक-पञ्चदशभाषाकलितललितकलापालापक-प्रविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मापक-वादिमानमर्दक-श्रीशाहुछत्रपति कोल्हापुरराजप्रदत्त-"जैनशास्त्राचार्य"-पदभूषित-कोल्हापुरराजगुरुबालब्रह्मचारी-जैनशास्त्राचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्य-श्री-घासीलालव्रति-विरचितायामुपासकदशाङ्गमूत्रस्याऽगारधर्मसञ्जीवन्याख्यायां व्याख्यायामष्टमं महाशतकाख्यमध्ययनं
समाप्तम् ॥ ८ ॥
भक्तका अनशन करके, आलोचना प्रतिक्रमण किया हुआ समाधिपूर्वक यथासमय काल करके सौधर्मकल्पके अरुणावतंसकविमानमें देवपने उत्पन्न हुआ ॥ उसकी चार पल्योपम स्थिति है। महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा ॥ २६८ ॥ निक्षेप पूर्ववत् ॥
"".." सातवें अंग उपासकदशाके आठवें अध्ययनकी अगारसञ्जीवनी
टीकाका हिन्दी भाषानुवाद समाप्त ॥८॥
કરીને, આલેચના પ્રતિક્રમણ કરી સમાધિપૂર્વક યથાસમય કાળ કરી, સૌધર્મકલ્પના -અરૂણુવતંસક વિમાનમાં દેવપણે ઉત્પન્ન થયો. એની ચાર પલ્યોપમ સ્થિતિ છે. भाविड क्षत्रमा सिद्ध . (२६८). निक्षेप पूर्ववत. ઇતિ શ્રી ઉપાસકદશાંગસૂત્રના આઠમા અધ્યયનની અગાસંજીવની
ध्याभ्यान गुती-सापानुवाद समाप्त (८).
ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર

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