Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 528
________________ अगारधर्मसञ्जीवनी टीका अ. ८ मू. २६२-२६८ महाशक्तिगतिवर्णनम् ५१३ माणे विहरइ॥२६६।।तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ रायगिहाओ नयराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता वहिया जण वयविहारं विहरइ ॥२६७॥ तए णं से महासयए समणोवासए बहुहिं सील जाव भावेत्ता वीसं वासाइं समणोवासगपरियायं पाउणित्ता, एकारस उवासगपडिमाओ सम्म काएण फासित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सट्रि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता आलोइयपडिकंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणवडिसए विमाणे देवत्ताए उववन्ने । चत्तारि पलिओवमाइं ठिई। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ॥२६८॥ निक्खेवो ॥ सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं अट्ठमं __ अज्झयणं समत्तं ॥८॥ विहरति ॥२६६।। ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरोऽन्यदा कदाचिद् राजगृहानगरात्मतिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्य बहिर्जनपदविहारं विहरति ॥ २६७॥ ततः खलु स महाशतकः श्रमणोपासको बहुभिः शील यावद् भावयित्वा विंशति वर्षाणि श्रमणोपासकपर्यायं पालयित्वा, एकादशोपासकप्रतिमाः सम्यक कायेन स्पृष्ट्वा मासिक्या संलेखनयाऽऽत्मानं जोषयित्वा षष्टिं भक्तान्यनशनेन छित्त्वा, आलोचितनमस्कार करके संयम और तपसे आत्माको भाते हुए विचरने लगे।।२६६॥ तदनन्तर एक समय श्रमण भगवान् महावीर राजगृह नगरसे निकले और देश-देश विचरने लगे ॥ २६७ ॥ तब महाशतक श्रावक बहुतसे शील आदिसे यावत् आत्माको भाबित करके वीस वर्ष तक श्रावकपर्याय पालकर-ग्यारह प्रतिमाओंका भलीभाति सेवन कर मासिकी (एक मासकी) संलेखनासे आत्माको जूषित (सेवित) कर, साठ આત્માને ભાવિત કરતા વિચારવા લાગ્યા. (૨૬૬). પછી એક સમયે શ્રમણ ભગવાન શ્રી મહાવીર પ્રભુ રાજગૃહ નગરથી નીકળ્યા અને દેશદેશ વિચારવા લાગ્યા. (૨૬૭). પછી મહાશતક શ્રાવક ઘણું શીલ આદિ વ્રતથી યાવત્ આત્માને ભાવિત કરીને વીસ વર્ષ સુધી શ્રાવક પર્યાય પાળીને, અગિઆર પ્રતિમાઓને સારી સેવીને, માસિક (એક માસની) લેખનાથી આત્માને જૂષિત (સેવિત) કરીને, સાઠ ભકતનું અનશન ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર

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