Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 516
________________ अगरधर्मसञ्जीवनी टीका अ. ८ महाशतक अवधिज्ञानवर्णनम् ५०१ ॥ २४८ ॥ तए णं सा रेवई गाहावइणी महासयएणं समणोवासरणं अणाढाइजमाणी अपरियाणिज्जमाणी जामेव दिसं पाउबभूथा तामेव दिसं पडिगया ॥ २४९ ॥ मूलम् - तए णं से महासयए समणोवासए पढमं उत्रासगपडिमं. उवसंपजित्ताणं विहरइ । पढमं अहासुतं एक्कारसवि ॥ २५० ॥ तणं से महासय समणोवासए तेणं उरालेणं जाव किसे धमसिंतए जाए ॥ २५९ ॥ तए णं तस्स महासयस्स समणोवासयस्स अन्नया कयाइ पुवरत्तावरत्त काले धम्मजागरियं जोगरमाणस्स महाशतकेन श्रमणोपासकेनाऽनाद्रियमाणाः अपरिज्ञायमाना यामेव दिशं प्रादुर्भूता तामेव दिशं प्रतिगता ॥ २४९ ॥ छाया - ततः खलु स महाशतकः श्रमणोपासकः प्रथमामुपासकप्रतिमामुपसंपद्य विहरति । प्रथमां यथासूत्रं यावदेकादशापि || २५० ॥ ततः खलु स महाशतकः श्रमणोपासकस्तेनोदारेण यावत्कृशो धमनिसन्ततो जातः || २५१ ॥ ततः शतक श्रावक द्वारा अनाहत और अपरिज्ञात ( अस्वीकृत ) अर्थात् तिरस्कृत होकर जिधर से आई थी उधर ही चली गई ॥ २४९ ॥ टीकार्थ- ' तए णं से ' इत्यादि तदनन्तर महाशतक श्रावक पहली डिमाको अंगीकार कर विचरने लगा। पहली यावत् ग्यारहो पडिमाओंका शास्त्रानुसार पालन किया ।। २५० ।। इस उग्र कर्त्तव्य से वह महाशतक श्रमणोपासक यावत् बहुत ही कृश ( दुबला-पतला ) हो गया, यहां तक कि उसकी नस-नस दिखाई देने लगी ।। २५१ ।। एक समय તેની વાતના સ્વીકાર કે પરિજ્ઞાન કર્યાં વિના વિચરવા લાગ્યું. (૨૪૮). એટલે પછી રેવતી ગાથાપતિની મહાશતક શ્રાવકથી અનાધૃત અને અપરિજ્ઞાત (અસ્વીકૃત) અર્થાત્ તિરસ્કૃત થઈને જ્યાંથી આવી હતી ત્યાં જ ચાલી ગઈ. (૨૪૯). टीकार्थ- 'तए णं से' - छत्याहि यछी महाशत શ્રાવક પહેલી પડિસાને અંગીકારને વિચરવા લાગ્યું. પહેલી ચાવતુ અગીઆરે ડિમાઓનું શાસ્ત્રાનુસાર પાલન કર્યું. (૨૫૦). એ ઉગ્ર કર્તવ્યથી તે મહાશતક શ્રમણાપાસક ચાવત્ હુજ કૃશ (हुमणी) थह गयो, त्यां सुधी है तेना शरीरनी नसेनस महार हेमावा सागी. ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર

Loading...

Page Navigation
1 ... 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587