Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उपासकदशाङ्गसूत्रे पाडिहारियपीढ जाव ओगिण्हित्ता णं विहरइ ॥ २२१ ॥ तए णं से गोसाले मंलिपुत्तं सदालपुत्त समणोवासयं जाहे नो संचाएइ बहूहि छआघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य निग्गंथाओ पावयणोओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितंते पोलासपुराओ नगराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयबिहारं विहरइ ॥२२२॥ ततः खलु स गोशालो मङ्खलिपुत्रः सद्दालपुत्रस्य श्रमणोपासकस्यैतमर्थ पतिशृणोति, पतिश्रुत्य कुम्मकारापणेषु प्रातिहारिकं पीठ यावद् अवगृह्य विहरति ॥२२१॥ ततः खलु स गोशालो मङ्खलिपुत्रः सद्दालपुत्रं श्रमणोपासकं यदा नो शक्नोति बहुभिराख्यापनाभिश्च प्रज्ञापनाभिश्च सज्ञापनाभिश्व विज्ञापनाभिश्च नैग्रन्थ्यात्प्रवचनाचालयितुं वा क्षोभयितुं वा विपरिणमयितुं वा तदा शान्तस्तान्तः परितान्तः पोलासपुरानगरास्पतिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्य बहिर्जनपदविहारं विहरति ॥२२२॥
*टीका-आख्यापनाभिः आख्यान सामान्यतः कथनैरित्यर्थः, प्रज्ञापनाभिः -विविधवस्तुपरूपणाभिः, संज्ञापनाभिः प्रतिबोधनैः, विज्ञापनाभिः अनुनयवचनैः। लिए आप जाइए और मेरी कुम्भकारीकी दुकानोंसे पडिहारे पीठ फलक आदि ले लीजिए ॥२२०॥ मखलिपुत्र गोशाल श्रमणोपासक सद्दालपुत्रकी यह बात सुनकर उसकी दुकानोंसे पड़िहारे पीठ यावत् ग्रहण कर विचरने लगा ॥२२१॥ इसके अनन्तर गोशाल मंखलिपुत्र जब सामान्य बातोंसे, विविध प्रकारकी प्ररूपणाओंसे, प्रतिबोधक वाक्योंसे और अनुनय-विनय (आरजू-मिन्नत स्वार्थमय-विनय) करके सद्दालपुत्र श्रावककोनिग्रन्थ प्रवचनसे डिगाने,क्षुब्ध करने यावत् परिणाम पलटा देने में असमर्थ रहा तो शान्त, उदास और ग्लान (निराश) होकर पोलासपुर नगरसे निकला, निकल कर बाहर देशो-देश विचरने लगा ॥ २२२॥ તેથી આપ જાઓ અને મારી કુંભકારીની દુકાનમાંથી પ્રાતિહારિક (પડિહારपाछi भाभी देवाय तेवi) पी8 इस माह सयो ( २२०) भगतिपुत्र गोशण શ્રમણોપાસક પકડાલપુત્રની એ વાત સાંભળીને તેની દુકાનમાંથી પડીહારાં પીઠ યાવત ગ્રહણ કરી વિચારવા લાગ્યું. (૨૨૧) ત્યારપછી શાળ સંખલિપુત્ર જ્યારે સામાન્ય વાતેથી, વિવિ પ્રકારની પ્રરૂપણુએથી. પ્રતિબંધક વાકયેથી અને અનુનય-વિનય (સ્વાર્થમય વિનય) કરીને શાકડાલપુત્ર શ્રાવકને નિર્ગસ્થ પ્રવચ્ચેનથી ડગાવવા, સુબ્ધ કરવા ચાવત્ પરિણામે પલટાવવામાં અસમર્થ રહ્યો ત્યારે શાન્ત, ઉદાસ અને ગ્લાન (નિરાશ) થઈને પલાસપુર નગરથી નીકળે અને બહાર દેશેદેશ વિચારવા લાગે. (૨૨).
ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર
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