Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 466
________________ अ० धर्म० टीका अ. ७ मू. १९० - १९५ सद्दालपुत्र भगवद्वाक्लापवर्णनम् ४५१ मझेणं निग्गच्छs, निग्गच्छित्ता जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे जेणेव समणे भगवं महोवीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करिता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जाव पज्जुवासइ ॥ १९०॥ तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स तीसे य महइ जाव धम्मकहा समत्ता ॥ १९९ ॥ सद्दालपुत्ताइ समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी-से नृणं सद्दालपुत्ता । कलं तुमं पुवावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवणिया जाव विहरसि ! तए णं fairs मुद्यानं यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीरस्ते त्रैवोपागच्छति, उपागत्य त्रित्व आदक्षिणप्रदक्षिणं करोति, कृत्वा वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्त्विा यावत्पर्युपास्ते || १९० ।। ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरः सद्दालपुत्रस्याऽऽजीविकोपासकस्य तस्यां च महाति यावद् धर्मकथा समस्ताः ॥ १९९॥ सद्दालपुत्र ! इति श्रमणो भगवान् महावीरः सद्दालपुत्रमाजी विकोपासकमेवमवादीत्" स नूनं सहालपुत्र ! कल्ये एवं पूर्वापराह्न कालसमये येनैवाशोकवनिका याव होकर चला । फिर जिधर सहस्रम्रवन उद्यान था और जिधर श्रमण भगवान् महावीर थे उधर ही गया । जाकर दाहिने भागसे तीन प्रदक्षिणा करके वन्दना की, नमस्कार किया यावत् पर्युपासना की ॥ १९० ॥ तब श्रमण भगवान महावीरने उस बडें परिषद् में आजीविकोपासक सद्दालपुत्रको धर्मकथा कही || १९१ ॥ ' सहालपुत्र ! ' इस सम्बोधन से श्रमण भगवान् महावीरने सद्दालपुत्र से कहा - हे सद्दालपुत्र ! कल तुम अशोकवनी में यावत् विचरते थे સહસ્રામ્રવન ઉદ્યાન હતુ અને જ્યાં શ્રમણ ભગવાન મહાવીર હતા, ત્યાંજ તે ગયા. જઇને જમણા ભાગથી ત્રણ પ્રદક્ષિણા કરી વંદના કરી, નમસ્કાર, કર્યાં, ચાવત્ પર્યુ`પાસના કરી. (૧૯૦). પછી શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે એ મોટી પરિષદમાં भालुविडीयास सद्दाम पुत्रने धर्म था डी. (१८१ ) " सहासपुत्र !” सेवा सभोधने કરીને શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે સાલપુત્રને કહ્યું; “ હે સદ્દલપુત્ર ! કાલે તમે અશેવનમાં યાવતુ વિચરતા હતા, ત્યારે એક દેવ તમારી પાસે આવ્યે હતા. તે દેવ ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર

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