Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अगारधर्मसञ्जीवनी टीका अ.७ अग्निमित्राव्रतधारणवर्णनम् तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ पोलासपुराओ सहस्संबवणाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥२१२॥ तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ ॥२१३॥ तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते इमीसे कहाए लद्धट्रे समाणे-“एवं खलु सदालपुत्ते आजीवियसमयं वमित्ता समणाणं निग्गंथाणं दिदि पडिवन्ने, तं गच्छामि णं सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं समणाणं निग्गंथाणं दिदि वामेत्ता पुणरवि आजीवियदिदि गेण्हावित्तए”-ति कटु एवं संपेहेइ, महावीरोऽन्यदा कदाचित्पोलासपुरात्सहस्राम्रवणात्मतिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्य बहिर्जनपदविहारं विहरति॥२१२॥ततः खलु स सद्दालपुत्राश्रमणोपासकोऽअभिगतजीवाजीवो यावद्विहरति ॥२१३॥ ततः खलु स गोशालो मंखलिपुत्रोऽस्यां कथायां लब्धार्थः सन्-"एवं खलु सदालपुत्र आजीविकसमयं वमित्वाश्रमणानांनिग्रन्थानांदृष्टिं प्रतिपन्नः, तद् गच्छामि खलु सदालपुत्रमाजीविकोपासक श्रमणानां निर्ग्रन्थानां दृष्टिं वामयित्वा पुनरप्याजीविकदृष्टिं ग्राहयितुम्" इति कृत्वा,एवं सम्प्रेक्षते,सम्प्रेक्ष्याअनन्तर किसी समय, श्रमण भगवान् महावीर पोलासपुरके सहस्राम्रवन उद्यानसे निकले और बाहर देशो-देश विहार करने लगे ॥२१२॥ और श्रमणोपासक शकडालपुत्र-जीव अजीवका जानकार यावत् विचरताहै।
जब मंखलिपुत्र गोशालने यह वृत्तान्त सुना कि शकडालपुत्रने आजीविक मतको त्यागकर निग्रन्थ श्रमणका मत अंगीकार कर लिया है, तो उसने सोचा-"मैं जाऊँ और आजीविकोपासक शकडालपुत्रको निर्ग्रन्थ ત્યારપછી કઈ સમયે શ્રમણ ભગવાન મહાવીર પિલાસપુરના સહસ્સામ્રવન ઉદ્યાનથી નીકળ્યા અને બહાર દેશદેશ વિહાર કરવા લાગ્યા. (૨૧૨). અને શ્રમણોપાસક શકડાલપુત્ર જીવ અજીવને જાણકાર યાવત્ વિચારવા લાગ્યું. (૨૧૩).
જ્યારે મંલિપુત્ર ગે શાલકે એ વૃત્તાંત સાંભળે કે શકપાલપુત્રે આજીવિક મતને ત્યાગ કરીને નિગ્રંથ શ્રમણને મત અંગીકાર કરી લીધું છે, ત્યારે તેણે વિચાર્યું “હું જઉં અને આજીવિકે પાસક શકહાલપુત્રને નિર્ગસ્થ શ્રમણને મત છેડાવીને પાછો આજીવિકા મતને અનુયાયી બનાવું” એમ વિચારીને તે આજીવિક સંઘથી વિંટળાઈ,
ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર
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