________________
३. | अध्यात्म-प्रवचन सबसे बड़ी साधना है। जीवन की प्रारब्ध प्रक्रिया से भयभीत होकर कहां तक भागते रहोगे और कब तक भागते रहोगे ? आखिर, एक दिन उससे मोर्चा लेना ही होगा । देह आदि की तथाकथित आवश्यकता की पूर्ति करते हुए भी विकारों से निर्लिप्त रहना ही होगा, अन्तर्द्वन्द्व में विजेता बनना ही होगा, यही जीवन को सच्ची कला है।
भारत के अध्यात्म साधकों की जीवन-गाथा एक-से-एक सुन्दर है, एक-से-एक मधुर है। भारत के अध्यात्म-साधक शूली की नुकीली नोंक पर चढ़कर भी मुक्ति का राग अलापते रहे हैं। भारत के अध्यात्म-साधक शूलों की राह पर चलकर भी, मुक्ति के मार्ग से विमुख नहीं हो सके हैं। चाहे वे भवन में रहे हों या वन में रहे हों, चाहे वे एकाकी रहे हों या अनेकों के मध्य में रहे हों, चाहे वे सुख में रहे हों या दुःख में रहे हों, जीवन की प्रत्येक स्थिति में वे अपनी मुक्ति के लक्ष्य को भूल नहीं सके हैं। शूली की तीक्ष्ण नोंक पर और फूलों की कोमल सेज पर अथवा रंगीले राजमहलों में या वीरान जंगलों में रहने वाले ये अध्यात्म-साधक अपने जीवन का एक ही लक्ष्य लेकर चले और वह लक्ष्य था-मुक्ति एवं मोक्ष । और तो क्या भारत की ललनाएँ अपने शिशुओं को पालने में झुलाते हुए भी उन्हें अध्यात्मवाद की लोरियां सुनाती रही हैं । मदालसा जैसी महानारियाँ गाती हैं "तू शुद्ध है, निरंजन है और निर्विकार है । इस संसार में तू संसार की माया में आबद्ध होने के लिए नहीं आया है। तेरे जीवन का एकमात्र लक्ष्य है, भव-बन्धनों का विच्छेद करना, माया के जाल को काट देना, और सर्व प्रकार के प्रपंचों एवं समग्र द्वन्द्वों से विमुक्त होकर रहना ।' मैं आपसे कह रहा था, कि जिस भारत की ललनाएँ अपने दुधमुहे शिशुओं को पालने में झुलाते हुए लोरियों में भी अध्यात्मवाद के संगीत सुनाती हैं, उस भारत के समक्ष मोक्ष एवं मुक्ति से ऊँचा अन्य कोई लक्ष्य हो नहीं सकता। ___अब प्रश्न यह उठता है कि जिस मुक्ति की चर्चा भारत का अध्यात्मवादी दर्शन जन्म-घुट्टी से लेकर मृत्यु-पर्यन्त करता रहता है, जीवन के किसी भी क्षण में वह उसे विस्मृत नहीं कर सकता, आखिर उस मुक्ति का उपाय और साधन क्या है ? क्योंकि साधक बिना साधन के सिद्धि को प्राप्त कैसे कर सकता है ? कल्पना कीजिएआपके समक्ष एक वह साधक है, जिसने मुक्ति की सत्ता और स्थिति पर विश्वास कर लिया है, जिसने मुक्ति प्राप्ति का अपना लक्ष्य भी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org