Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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1. दव्वं सहावसिद्धं सदिति जिणा तच्चदो समक्खादो। सिद्धं तध आगमदो णेच्छदि जो सो हि परसमयो ।।
2. रण हवदि जदि सहव्वं असद्धवं हवदि तं कधं दव्वं ।
हवदि पुणो अण्णं वा तम्हा दन्वं सयं सत्ता ॥
3 दव्वं जीवमजीवं जीवो पुरण चेदगोवयोगमयो ।
पोग्गलदव्वप्पमुहं अचेदणं हवदि य अजीवं ॥
4. जाणदि पस्सदि सव्वं इच्छदि सुक्खं विभेदि दुक्खादो ।
कुन्वदि हिदमहिंदं वा भुजदि जीवो फलं तेसि ॥
5 सुहदुक्खजारपणा वा हिदपरियम्मं च अदिदभीरत्तं ।
जस्स ग विज्जदि पिच्चं तं समणा विति अज्जीवं ॥
6. जीवा पोग्गलकाया, धम्माधम्मा य काल प्रायासं । तच्चत्था इदि भणिदा, णाणागुणपज्जयेहि संजुत्ता ॥
प्राचार्य कुन्दकुन्द

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